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महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु घत्ता-ता पेसहि लहु धूय मा संधहि धणुगुणि सरु ॥ वढ" जरसंधि विरुद्धं धुवु पावहि वइवसपुरु ॥21॥
(22) तं णिसुणेप्पिणु' सो पडिजंपइ भडबोक्कहं वर वीरु' ण कंपइ। जो महं पुत्तिहि चित्तहु रुच्चइ सो सूहउ किं देसिउ बुच्चइ । पहु तुम्हहं वि घिट्ट परयारिय अज्ज ण जाह' समरि अवियारिय। ता तहिं लग्गह रोहिणिलुद्ध महिवइसेण्णई सहसा कुद्धई। थिय जोति' देव गयणंगणि अण्णहु अण्णु भिडिउ समरंगणि' । कंचणविरइइ रहयरि चडियउ णववरु णियभाइहिं अभिडियउ। बिंधते० सहस त्ति परिक्खिउ तेण समुद्दविजउ ओलक्खिउ।
जे सर घल्लई ते सो छिंदइ अप्पुणु" तासु ण उरयलु भिंदइ । जलगि मा दोह. नियमानु... सुरु गिहालवि जउवइभुयबलु। दिव्वपत्तिपत्तेहिं विहूसिउ णियणामंकु बाणु पुणु पेसिउ। पडिउ पर्यंतरि सउरीणाहें
उच्चाइउ अरिमयउलवाहें । अक्खराइं वाइयई सुसत्तें
"वियलियबाहजलोल्लियणेत्तें।
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घत्ता-तब तक शीघ्र ही कन्या भेज दो, और धनुष की डोरी पर तीर मत चढ़ाओ। हे मूर्ख ! जरासन्ध के क्रुद्ध होने पर तुम निश्चय से यमपुर प्राप्त करोगे।"
(22) यह सुनकर वह कहता है--"योद्धा रूपी बकरों से श्रेष्ठवीर नहीं डरते। जो मेरी पुत्री के मन को अच्छा लगा वही सुन्दर, तुम उसे देशी क्यों कहते हो ? तुम लोग और तुम्हारा राजा भी परदारिक (दूसरे की स्त्री का लालची) है जो आज भी यद्ध में अविचारशील है।" तब वहीं पर रोहिणी की लोभी राजा की सेनाएँ पीछे लग गयीं और क्रुद्ध हो उठी। देव आकाश के आँगन में स्थित होकर देखने लगे। समरांगण में वे एक-दूसरे के विरुद्ध लड़ने लगे। नया वर भी स्वर्णनिर्मित श्रेष्ठ रथ पर चढ़कर अपने भाइयों से भिड़ गया। तीर से भेदते हुए उसने शीघ्र परीक्षा कर ली। उसने समुद्रविजय को पहचान लिया। वह जो तीर छोड़ता, उन्हें वह काट देता, और स्वयं उसके वक्षःस्थल का भेदन नहीं करता। विश्व में भाई वत्सलता से रहित नहीं हो सकता। बहुत समय यदुपति के भुजबल को देखकर, उसने फिर दिव्य पंक्ति पत्रों से विभूषित तथा अपने नाम से अंकित वाण भेजा। पैरों के बीच में पड़े हुए उस पत्र को शत्रु रूपी मृगकुल के शिकारी शौरीनाथ समुद्रविजय ने उठाया, सत्त्व और साहस के साथ, आँखों से हर्षाश्रु बहाते हुए, उसके अक्षर पढ़े-लोगों के अनुरोध पर
12. 135 तहो धूप। 19. BK वट।
(22) 1. PS णिसुचि सो वि। 2. A याची 115 वरधारू । 3.5 सूहयु। . ' जाहु । . तो।6.5 गेहिणि" K गहिणि in second hand. 7. B जोत; 5 जोयंत । 8. A' लगु। 9. 5 सबरंगणि। 10. 3 विद्धते बिधनें। 11. APS अप्पणु। 12. D जीवइभुय": P जोयड़ : 19. BAIS. दिव्यपारख";
दिव्यपंति। 14. "मियल1 15. B"वाहभोल्लिया। 16. A "पसें।