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________________ 561 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु ( 21 ) या उपरि घुलियई तंतीरवतोसियगिव्याणहु संधु तरुणु सुरिंदें ससुरें पुणरवि सो विज्जाहरदिष्णहं मणहरलक्खणचच्चियगत्तउ राउ हिरण्णवम्मु तहिं सुम्मइ तासु कंत णामें पोमावइ रोहिणि पुत्ति जुत्ति णं मयणहु ताहि सयंवरि मिलिय गरेसर ते "जरसंधपमुह अवलोइय नहिं पिते पसिन् माल पडिच्छिय उडिउ कलवलु जरसिंधहु" आणइ कवविग्गह तेहिं हिरण्णवम्मु संभासिउ मालइमाल ण कइगलि बज्झइ अनंगई वेवंतई बलियई' । चित्त सयंवरमाल जुवाणहु । विहिउ विवाहमहुच्छउ ' ससुरें । सत्तसयई परिणेपिणु कण्णहं । कालें रिद्वय संपत्तउ । जासु रज्जि णउ कासु वि दुम्मइ । परहुयसद्द बालपाडलगइ' । किं वण्णमि भल्लारी भुयणहु' । तेयवंत णावइ ससिणेसर । कण्णइ माल ण कासु वि ढोइय । जिणिवि कण्ण सकलाकोसल्लें । संणद्ध सयलु वि पत्थिवबलु । धाइय जादव" कउरव मागह पई गउरविउ काई किर देसिउ । जाव ण अज्ज वि राउ विरुज्झइ । [83.21.1 5 10 15 ( 21 ) उसके नेत्र स्वामी के ऊपर व्याप्त हो गये । उसके आठों अंग काँपते हुए मुड़ गये। अपने वीणा - स्वर सं देवों को सन्तुष्ट करनेवाले युवक के ऊपर उसने स्वयंवर माला डाल दी । इन्द्र ने देवों के साथ उसकी प्रशंसा की। ससुर ने विवाह का महोत्सव किया। फिर भी, उसने विद्याधरों के द्वारा दी गयीं सात सौ कन्याओं के साथ विवाह किया और सुन्दर लक्षणों से अलंकृत शरीरवाला वह कुछ समय के बाद रिष्टनगर पहुँचा । वहाँ अच्छी बुद्धिवाला राजा हिरण्यवर्मा था। उसके राज्य में कोई भी दुर्गति में नहीं था। उसकी पत्नी का नाम पद्मावती था। वह कोयल के समान बोलीवाली और हंस के समान चालवाली थी। उसकी रोहिणी नाम की पुत्री थी, जो मानो कामदेव की युक्ति थी। भुवन में श्रेष्ठ उसका क्या वर्णन करूँ ? उसके स्वयंचर में सूर्य-चन्द्र के समान तेजवाले अनेक राजा सम्मिलित हुए। उसने जरासन्ध प्रमुख राजाओं को देखा; परन्तु उसने किसी को स्वयंवरमाला नहीं डाली । वहाँ पर उस वनगज के प्रतिमल्ल वसुदेव ने अपने कला-कौशल से कन्या को जीतकर माला स्वीकार कर ली। तब समस्त राजसेना समृद्ध हो उठी। जरासन्ध की आज्ञा से युद्ध करनेवाले समस्त कौरव, मागध और यादव दौड़े। उन्होंने हिरण्यवर्मा से कहा--"तुमने इस राहगीर को इतना गौरव क्यों दिया ? मालतीमाला बन्दर के गले में नहीं बाँधी जाती, इसलिए जब तक कोई दूसरा राजा क्रुद्ध नहीं होता, (21) AP चलिय । 2. महोच्छ । 3. A 4 A पडलगइ। 5. A भुषणहो $ सुयणहो । 6. B जरसंघ K जरसंधु जरसिंधु । वियि । 9 B जरसंघहो $ जरधिहो । 10. A आणच 11. APS जायव । ' C
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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