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83.20.12]
महाकइपुष्फयंतविरवड महापुराणु पत्ता-एम भणेप्पिणु जेठु' गउ गिरिकुहरणिवासहु। मुणिवरसंघु असेसु मुक्कउ दुक्खकिलेसहु |॥19॥
(20) अज्ज वि वीण तेत्थु सा अच्छड जइ मह आणियि को' वि पयच्छइ। तो गंधव्वदत्त किं वायइ
महुँ अग्गई पर वयणु णिवायइ । वणिणा त णिसुणिवि विहसतें। पेसिय णियपाइक्क तुरंते। गय गयउरु वल्लइ पणवेप्पिणु मग्गिय तव्वंसिय मणु लेप्पिणु। वियलियदुम्मयपंकविलेवहु आणिवि' ढोइय करि वसुएवहु। सा कुमारकरताडिय वज्जई सुइभेयहिं बावीसहिं छज्जइ । सत्तहिं वरसरेहिं तिहिं गामहिं अट्ठारहजाइहिं सुहधामहि । अंसह सउ "चालीसेक्कोत्तरु गीइ पंच वि पथडइ सुंदरु। तीस वि गामराय रइआसउ चालीस वि भासउ छ विहासउ"। एक्कवीस मुच्छणउ" समाणइ एक्कूणइं" पण्णासई ताणई।
घत्ता-तहु वायंतहु एंव वीणा'" सुइसरजोग्गउ।
___णं वम्भहसरु तिक्खु मुद्धहि हियवइ लग्गउ ॥20॥ घत्ता--यह कहकर बड़े भाई (विष्णु) पहाड़ी गुफा के निवास में चले गये। समस्त मुनिसंघ दुःख-कष्ट से मुक्त हो गया।
(20) परन्तु वह वीणा आज भी वहाँ है, यदि कोई उसे लाकर मुझे दे दे, तो गन्धर्वदत्ता क्या बजाती है, मेरे आगे उसका मुख मैला हो जाएगा। यह सुनकर सेठ ने हंसते हुए, अपने अनुचर शीघ्र भेजे। हस्तिनापुर जाकर, राजा को प्रणाम कर, उसके कुटुम्ब के लोगों का मन लेकर वीणा माँगी। और लाकर, दुर्मद की कीचड़ को धोनेवाले वसुदेव के हाथ में वह दे दी। कुमार के हाथों से प्रताड़ित होकर वीणा बजती है, और बाईस ही स्वरभेदों से सज्जित हो उठती है। श्रेष्ठ स्वरों, तीन ग्रामों, शुभधाम अठारह जातियों, एक सौ इकतालीस अंशों, पाँच गीतों, पाँच प्रकृतियों, रति के आश्रय तीस ग्रामराग, चालीस भाषाएँ, छह विभाषाएँ, इक्कीस मूर्च्छनाएँ और उनचास समान तानें। ___घत्ता-इस प्रकार उसके श्रुतियों और स्वरों के योग्य, वीणा बजाने पर, कामदेव का तीर उस मुग्धा के हृदय में जा लगा।
7. AP निट्ठ।
(20) 1.5 का वि। 2. 0 तं सुरिणवि बियसतें। 3. A पहसते। 1. A यीणा पण । 5. A मग्गिय तक्खणि वीण लएप्पिण; 8 मणुणेपिण; Als. तत्वंसियमणुणेपिणु (सध्यतिय+म+अणुणेपिणु)। 6. P "दुम्मा । 7.A आणिय। 8. S Nो। H. AP छज्जर । 10. AP वजड़।।1. AP विहिं गामहिं. ६ बहुमामझिं। 12. 5 अंसहिँ। 19. A चालीसेकुत्तरु; B घालौतिक्कुतरु; s चालीसेक्कोत्तरु। 14. A गीउ पंचविहु। 15. S रइयासय। 16. S विहासव। 17. पुच्छण। 19. A एस्कूणह पण्णास जि B एक्कूण यि पण्णाताई। 19, AP als. चीणासरू सुद।