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________________ 54 | महाकइपुष्फयंतविरपर महापुराणु 183.18.7 10 किं हय गय रह कि जंपाणई कि धयछत्तई दव्वणिहाणई। कवडविप्यु भासइ महिसामिहि णिव कम तिण्णि देहि महु भूमिहि। तं णिसुणिवि बलिणा सिरु धुणियउं हा हे दियवर किं पई भणियउं। वाय तुहारी दहवें भग्गी लइ धरित्ति मढथितिहि जोग्गी। घत्ता-ता विठ्ठहि बडूंतु लग्गउं अंगु णहरि ॥ _णिहियउ मंदरि पाउ एक्कु बीउ मणुउत्तरि" |॥18॥ (19) तइयउ कमु उक्खित्तु' जि अच्छइ कहिं दिज्जउ तहि थत्ति ण पेच्छइ। सो विज्जाहरतियसहिं अंचिउ पियवयणेहिं कह व आउंचिउ। ताव तेत्थु घोसावइवीणइ देवहिं दिण्णइ मलपारहाणइ। गरुयारउ णियभाइ सहोयरु तोसिउ पोमरहें जोईसरु। मारहुं आढत्तउ दियकिंकरु विण्हुकुमारु अभयंकरु। अच्छउ जियउ वराउ म मारहि रोसु म हियउल्लइ वित्थारहि। रोसें चंडालत्तणु किज्जइ रोसें “णस्यविवरि पइसिज्जइ। एण' जि कारणेण हयदुम्मइ कयदोसह मि खमंति महामई। स्या पालकी, क्या ध्वजछत्र, क्या द्रव्य-कोष ?' तब कपटी ब्राह्मण कहता है-“हे पृथ्वीस्वामी नृप, मुझे तीन पैर धरती दीजिए।' यह सुनकर राजा बलि ने अपना माथा ठोका कि हे द्विजवर ! तुमने यह क्या कहा ? तुम्हारी वाणी को दैव ने नष्ट कर दिया है, इतनी धरती तो लो जिसमें एक मठ बन सके। ___ घत्ता--तब विष्णु का बढ़ता हुआ शरीर आकाश से जा लगा, एक पैर उसने राजा के घर पर रखा और दूसरा मानुषोत्तर पर्वत पर। (19) तीसरा पैर उठा हुआ रह गया, कहाँ रखा जाय, कोई स्थान दिखाई नहीं देता था। तब विद्याधरों और देवों ने उसकी पूजा की, और प्रियवचनों से किसी प्रकार संकुचित कराया। देवों ने उस अवसर पर मल से रहित घोषावती वीणा दी। पद्मरथ ने अपने सगे बड़े भाई योगीश्वर को सन्तुष्ट किया। उसने द्विज-अनुचर (मन्त्री) को मारना शुरू किया, परन्तु अभयंकर विष्णुकुमार उसे क्षमा कर देते हैं कि वह जीवित रहे। उस बेचारे को मत मारो। अपने हृदय में क्रोध धारण मत करो। क्रोध से चाण्डालत्व होता है, क्रोध से नरक विवर में प्रवेश किया जाता है। इसी कारण से दुर्गति को नष्ट करनेवाले महामति दोष करनेवालों को भी क्षमा कर देते हैं। 1. A देहु महु। 11. A मालनिहिः । मदत्तिहि। 12. A मंदिर। 18. B मणउत्तरि । (19) 1. RK उक्वेतु। 2. BEAs. तहो धत्ति। 3. भायसहो। 4. APS रोसें सत्तममहि पाविज्जइ। 5. A एण वि। 6. AP महाजइ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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