SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 52 10 महाकइपुष्फयंतविरयड महापुराणु [83.16.5 भणिउ णवंतें पई पडिवण्णउं 'आसि कालि जं पई वरु दिण्णउ। 5 जं तं देहि अज्जु मई मग्गिउं जइ जाणहि पत्थिव ओलग्गिउं। ता राएण वुत्तु ण वियप्पमि जं तुहं इच्छहि तं जि समप्पमि। पडिभासइ बंभणु असमत्तणु सत्त दिणाई देहि रायत्तणु । दिण्णउँ पत्थिवेण तें लइयउं रोसें सब्बु अंगु पइछइयउ। साहुसंघु पाविढें रुद्धउ "मृगवहु महु चउदिसु पारद्धउ। सोत्तिएहिं सोमबु" रसिज्जइ सामवेय सुइसुमहुरु" गिज्जइ। भक्खिये जंगलु अड्डवियड्डइं उप्परि रिसिहिं णिहित्तइं हड्डई। धत्ता-नोज्असरायसमूह जंकण विण वि छित्तउ । __ तं सवणहं सीसग्गि जणउच्छिउँ चित्तउं ॥16॥ ( 17 ) सोत्तइं पूरियाई सुहवारें __बहलयरेण धूमपटमारें। अणुदिणु पयडियभीसणवसणहं तो वि धीर रूसंति ण पिसुणहं। तहिं अवसरि दुक्कियपरिचत्ता जणण' तणय ते जहिं तवतत्ता। णिसि णिवसति महीहरकंदरि भीरुभयंकरि सुयकेसरिसरि। में था। नमस्कार करते हुए वह बोला-"जो तुम्हारे द्वारा स्वीकृत और दिया हुआ वर है वह आज मुझे दो, मैं माँगता हूँ; हे राजन् ! यदि यह जानते हो कि मैंने सेवा की थी।" तब राजा बोला, "मैं कोई विचार नहीं करता, जो तुम चाहते हो वह मैं तुम्हें सौंपता हूँ।" तब वह मिथ्यादृष्टि ब्राह्मण कहता है-"सात दिन के लिए मुझे राज्य दे दो।" राजा ने राज्य दे दिया। उसने राज्य ले लिया। क्रोध से उसका (विप्र का) सास शरीर आच्छादित हो गया। उस दुष्ट ने साधुसंघ को अवरुद्ध कर दिया और उसने चारों दिशाओं में पशुवधवाला यज्ञ प्रारम्भ करवा दिया। ब्राह्मणों के द्वारा सोमजल पिया जाये, और श्रुतिमधुर सामवेद गाया जाये, और माँस खाकर टेढ़ी-मेढ़ी हड्डियाँ मुनियों के ऊपर फेंक दी गयीं। __ पत्ता-जिस भोजन और सुरा समूह को किसी ने भी नहीं छुआ, लोगों की वह जूठन मुनियों के सिरों पर फेंक दी गयी। (17 कष्टप्रद प्रचुरतर धूम के समूह से उनके कान भर गये। प्रतिदिन भयंकरतम कष्ट पहुँचानेवाले उन दुष्टों पर ये धीर मुनि क्रुद्ध नहीं हुए। उस अवसर पर पापों से मुक्त वे दोनों पिता-पुत्र जहाँ तप कर रहे थे और एक रात, जिसमें सिंह की दहाड़ सुनायी दे रही थी, ऐसी भयंकर पहाड़ी गुफा में निवास करते हुए 7. Aaklds aller 5 b तुदिक्षा आणंदपवण्ण Srcads for 5 b तुहिदाणु आणंदपाई। 8. P राहत्तणु। 9, ABPS पच्छइयउं। 10. AP मिगबहु। 11. A मोमंच। 12. AS सापवेज। 13. A सुइपहुरा सुइपहरें। 14. Als. विपित्त । (17) 1. Aसुहशागि। 2." मीडिय । . B दुक्लिय। 4. P जणय। 5. A जितहि तदतत्ताः हि ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy