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________________ 83.16.4] महाकइपुष्फयंतबिरयर महापुराणु [51 ओहिणाणु तायहु उप्पण्ण दिउं जगु बहुभावभिइण्णउँ । एत्तहि गयउरि पयपोमाइउ करइ रज्जु पउमरहु महाइउ । ता सौ पच्चतेहिं णिरुद्धउ तहु बलि णाम मंति "पविबुद्धउ। तेण गुरु वि ओहामि सक्कहु बुद्धिइ माणु मलिउ परचक्कहु। संतूसिवि' रोमंचियकाएं मग्गि मग्गि वरु बोल्लिउ राएं। भनि बुराः सुधि करेगसु . .. कहिं मि कालि महुँ मग्गिउं देज्जसु । कालें जंतें मारणका आयउ सूरि "अकंपण णामें। सहुँ रिसिसंघे जिणवरमार्गे 'पुरबाहिरि थिउ "काओसग्गें। 10 घत्ता-बलिणा मुणिवरु दिटु सुरिउं अवमाणेप्पिणु। इह एएं हठं आसि वित्तु'' विवाइ जिणेप्पिणु ।।15।। (16) अवयारहु अवयारु रइज्जइ उवयारह उबयारु जि' किज्जइ। खलहु खलत्तणु सुहिहि सुहित्तणु जो ण करइ सो णियमिवि णियमणु। तावसरूवें' णिवसउ णिज्जणि हउँ पुणु 'अज्जु खवमि किं दुञ्जणि । एंव भणेप्पिणु 'गउ सो तेत्तहिं अच्छइ णिवइ णिहेलणि जेत्तहिं। और उसने नानाभेदों से भिन्न संसार को देख लिया। गजपुर (हस्तिनापुर) में प्रजा के द्वारा प्रशंसित वह महाऋद्धियाला पद्यरथ राज्य करने लगा। शत्रुओं के द्वारा उसे घेर लिया गया। उसका बलि नाम का अत्यन्त प्रबुद्ध मन्त्री था। उसने इन्द्र के भी गुरु अर्थात् वृहस्पति को तिरस्कृत कर दिया था। उसने अपनी बुद्धि से शत्रु का मान-मर्दन कर दिया। इससे सन्तुष्ट होकर रोमांचित शरीरवाले राजा ने कहा-'वर माँग लो, वर माँग लो।' तब मन्त्री ने कहा-अभी सन्तुष्टि करना, किसी समय जब मैं माँगूं तब देना। समय बीतने पर कामदेव को पराजित करनेवाले अकम्पन नाम के आचार्य अपने मुनिसंघ के साथ आये। जिनवर के मार्ग से आकर वे नगर के बाहर कायोत्सर्ग से स्थित हो गये। ___घत्ता-मन्त्री बलि ने मुनिवर को देखा। उसने पिछले अपमान की याद की कि इसने यहाँ विवाद में जीतकर मुझे छोड़ दिया था। (16) 'अपकारी के साथ अपकार करना चाहिए और उपकारी के साथ उपकार किया जाए। दुष्ट के साथ दुष्टता और सज्जन के साथ जो सज्जनता नहीं करता, वह अपने मन को नियमन कर तपस्वी होकर निर्जन वन में रहे। आज मैं दुर्जन को क्यों क्षमा करूँ ?' यह सोचकर, वह वहाँ गया जहाँ राजा अपने राजप्रासाद 9. A अबहिणाणु। 4.A भावहिं wिs AIS भावविहि गाउं । 5.5 परमरह। 6.5 पविद्धन। 7. P ओहामिय। ४. 5 परयस्कही। 9. P संतोसिधि । 10. APS अपणु। 11. B पुरि। 12. P कायोसगें। 19. H घेत्तु। (16) 1. A' वि। 2. P सुइत्तणु। 3. 5 "कए। 4.5 रन्जमु खवमि व दुज्जणु। 5. B खपमि अज्जु । 6. S सो गउ ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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