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महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
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गॅप कुमार वि तर्हि जि णिविङउ कम्बाणु व हियइ पट्ठउ हमि किं पि दावमि तंतीसरु ता तहु दोइयाउ सुइलीणउ' "जी तु" एही तंति ण एम बिज्झइ " सिरिहलु एव एवं किं धवियउं लक्खणरहियउ जडमणहारिउ अक्खर सो तहिं तहि अक्खाणउं
किं कि
कण्णइ' 'अणिमिसणयणइ' दिउ । विहसिवि पहिउ पहासइ सुट्टउ । जइ विण चल्लइ सरठाण पंच सत्त णव दह" बहु वीणउ ।
करु ।
डु ण एहउ जुज्जइ । वासुइ एहउ एत्थु विरुज्झइ । सत्यु ण केण वि मणि चिंतवियउं" । मेल्लिवि वीणउ पाइं" कुमारिउ । आलावणिक" चारु चिराणउं ।
घत्ता - हत्थायपुरि राउ मिज्जियारि घणसंदणु ।
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तहु पउमावइ" देवि विठु णाम पिउ णंदणु ||14||
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अवरु पउमरहु सुउ लहुयारउ जणु णविवि अरहंतु भडारउ । रिसि होएप्पिणु 'मृगसंपुष्णहु सहुं जेहें सुएण गउ रण्णहु ।
[83.14.1
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कुमार भी जाकर वहाँ बैठ गया। कन्या ने अपलक नेत्रों से उसे देखा । कामदेव का तीर उसके हृदय में चुभ गया। कुमार सन्तुष्ट होकर हँसते हुए कहता है- “मैं भी कुछ तन्त्रीस्वर का प्रदर्शन करना चाहता हूँ; यद्यपि स्वर- स्थानों पर मेरा हाथ नहीं चलता । तब कानों में लीन होनेवाली पाँच, सात, नौ और दस बहुत-सी वीणाएँ उसके सामने उपस्थित की गयीं । परन्तु वसुदेव कहता है, "क्या किया जाए ? यह वीणा उपयुक्त नहीं है। यह वीणा इस प्रकार निबद्ध नहीं की जाती, यह वासुकी (डोर) भी यहाँ पर विरुद्ध है। यह तुम्बक भी इस प्रकार क्यों रखा गया ? किसी ने भी ( इसकी रचना में) शास्त्र का विचार नहीं किया। इस प्रकार लक्षणों से रहित मूर्खों का मन हरनेवाली उस सुन्दर वीणा को, कुमारी के समान छोड़कर वह कुमार वहाँ पर वीणा के लिए एक पुराना आख्यान कहता है।
घन्ता - हस्तिनागपुर में शत्रुओं को जीतनेवाला मेघरथ नाम का राजा था । उसकी पद्मावती देवी और विष्णु नाम का पुत्र था।
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एक और उसका पद्मरथ नाम का छोटा पुत्र था । पिता आदरणीय अरहन्त को नमस्कार कर और मुनि होकर अपने बड़े पुत्र के साथ, पशुओं से व्याप्त वन में चला गया। पिता को अवधिज्ञान उत्पन्न हो गया
(14) 1. 13 कुमार | 2. AP कंत 5. PK अनिल 1. Sणवहिं । 5. HP हउं मि: S उउ दि। 6. A सरठाणहु । 7. A सरलीणउ 8. A मुबु III. AP वीणा 11. A त्रिवज्झई। 12. P चित्तत्रियउ । 13. A तासु कुसारिट 14. A कउ 155 पोमावर 16. A पियणंदणु । 2 APSB संग्णहो ।
(15) 1 ABP