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________________ 83.13.13] महाकइपुष्फयंतविरवर महापुराणु [49 (13) असिजलसलिलझलक्कयसित्तें अंगारएण सुकसणियगत्ते । सोहदेउ झड त्ति विमुक्कउ पहरणकरु' सई संजुइ ढुक्कउ । परिणिः पड़ णिवतु णियच्छिउ पण्णलहुयविज्जाइ 'पडिच्छिउ। तहि पहरतिहि वहरि पलाणउ सुंदर गयणहु मयणसमाणछ । तरुकुसुमोहदिसोहपसाहिरि णिवडिउ चंपापुरवरबाहिरि। कीलमाण वणि मणिकंकणकर पुच्छिय तेण तेत्थु णावरणर। ते भणंति मुद्धत्तें णडियउ किं गवणंगणाउ तुहं पडियउ। वासुपुज्जजिणजम्मणरिद्धी' ण मुणहि चंपापुरि सुपसिद्धी। तं णिसुणिवि तें णयार' पलोइय" सहमंडवबहुविउसविराइय"। 1 चारुदत्तवणिवरवइतणुरुह जहिं जहिं जोइज्जइ तहिं तहिं सुह। जहिं गंधब्बदत्त" सई संठिय महुरवाय णावइ कलयंठिय । ___घत्ता--जहिं वइसवइसुचाइ रमणकामु" संपत्तउ। खेयरमहियरबंदु' वीणावज्जे जित्तउ |13|| 10 (13) तलवार के जल की लहरों के समान सिक्तशरीर और अत्यन्त कृष्ण शरीर अंगारक ने सुभद्रा के उस पुत्र (वसुदेव) को तत्काल छोड़ दिया। गृहिणी (शाल्मली) ने पति को गिरते हुए देखा, तो (तत्काल) उसने उसे पर्णलघु विद्या प्रदान कर दी। उसके प्रहार करने पर दुश्मन भाग गया। कामदेव के समान सुन्दर वह, वृक्ष कुसुमों के समूह से शोभित दिशाओंवाले चम्पापुर नगर के बाहर गिरा। उसने वहाँ पर मणियों के कंगन हाथ में पहिने हुए और वन में क्रीड़ा करते हुए नागरिकों से पूछा । वे कहते हैं- "मुग्धता से प्रतारित तुम आकाशमार्ग से गिर पड़े हो। वासुपूज्य जिनवर के जन्म से समृद्ध इस प्रसिद्ध चम्पापुरी को तुम नहीं जानते क्या ?" यह सुनकर उसने नगरी का अवलोकन किया जो सभामण्डप और प्रचुर विद्वानों से शोभित थी। वहाँ चारुदत्त श्रेष्ठिवर की कन्या जहाँ-जहाँ देखी जाती, वहाँ-वहाँ (सर्वांग) सुन्दर थी। वहाँ पर गन्धर्वदत्ता स्वयं बैठी हुई थी और कोयल के समान मधुर वाणीवाली थी। धत्ता-जहाँ उस वैश्यपति की कन्या के द्वारा कामभाव-प्राप्त विद्याधर राजाओं का समूह वीणावादन में जीत लिया गया था। (13) 1. A "झुलुक्कय BPS "झलक्कए। ५. A सुकसिणिय"। 3. B पहरणकक्कसि संजुए। 4. P धरणए। 5. B पहिच्छउ। 6. B भणंत। 7. K वासपुज्ज18. चंघाउरि। 9. ABP । 10. A पलोयज; ? पलोइउ। 11. AP विराहउ। 12. B चारुइत्तु: । चारुदत्तु। 19. HP "तणुरुहु। 11. DPP तु। 15. B गंधव्ययत्त सइ। [H. H स्म। 17. A "बिंदु: वेंदु ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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