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________________ 441 महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [83.8.3 5 जहिं चरंति भीयर रयणीयर चउदिसु उच्छति लक्खणसर। सीयविरहि संकमइ णहतरु घोलिरपुच्छु' सरामउ वाणरु। णीलकंठु णच्चइ रोमंचिउ अज्जुणु जहिं दोणे संसिंचिउ। णउले सो ज्जि णिरारिखं सेविउ भायरु किं णउ कासु वि भायउ। इय सोहइ उववणु णं भारहु वेल्लीसंछण्ण' रविभार । जहिं पाणिउं णीयत्तणि णिवडइ जडहु अणंगई को किर पयडइ। तहिं असोयताले ता' आसीणउ सूहउ दीहरपथ रोणउ। णं वणु" लयदलहत्यहिं विज्जइ पयलियम बैंभहिं णं रंजइ। चलजलसीयरेहिं णं सिंचइ णिवडिकुसुमोहें गं अंचइ। साहाबाहहिं णं आलिंगइ परिमलेण णं हियवइ लग्गइ। पहिवपुण्णसामत्थे णव णव "सुक्कसुरुक्खहिं णिग्गय पल्लव । पणविवि पालियपउरपियालें रायह वज्जरियउं वणवालें। घत्ता-जो जोइसियहिं वुत्तु जरतरुवरकयछायउ। सो पुत्तिहि वरइत्तु णं अणंगु सई आयउ ॥8॥ 10 किस प्रकार देखा ? जिस प्रकार रामायण मुझे अच्छी लगती है। जहाँ भयंकर रजनीचर (उल्लू और राक्षस) विचरण करते हैं, चारों दिशाओं में लक्खणसर (सारस और लक्ष्मण के तीर) उछलते हैं। जहाँ वानर (बन्दर और सुग्रीव आदि) सीयविरह (शीत के अभाव, सीता के विरह में) में आकाश में उछलते हैं और अपनी पूँछ हिलाते हुए; सरामउ (वानरी और राम सहित) हैं। जिसमें नीलकण्ठ (शिखण्डी और द्रौपदी का भाई) नृत्य करता है। अर्जुन (इस नाम का वृक्ष और अर्जुन), द्रोण (घट और द्रोणाचार्य) से सींचा गया (जल से सींचा गया, तीरों से सींचा गया), जो नकुल (वृक्षविशेष, पाण्डवों का भाई) से अत्यन्त सेवित है। अपना भाई किसे अच्छा नहीं लगता ? वह उपवन इस प्रकार शोभित है मानो भारत हो (महाभारत हो), जहाँ रयि का प्रकाश लताओं से आच्छादित है, जहाँ पानी नीचे की ओर प्रवाहित है। जड (मूर्ख और जल) के लिए कौन (स्त्री) अपने अंग प्रकट करती है ? वहाँ वह अत्यन्त सुन्दर, लम्बे रास्ते से थका हुआ अशोक वृक्ष के नीचे बैठ गया। मानो वह उपवन अपने लतादल के हाथों से पंखा करता है, झरते हुए मकरन्द बिन्दुओं से रंजित करता है, चंचल जलकणों से सिंचित करता है, शाखा रूपी बाहों से मानो आलिंगन करता है। परिमल के द्वारा भानो हृदय से लगता है। उस पधिक के पुण्य सामर्थ्य से, सूखे हुए सुन्दर वृक्षों से नये-नये पत्ते निकल आये। चिरोंजी के प्रचुर वृक्षों का पालन करनेवाले वनपाल ने राजा से प्रणाम करते हुए कहा___घत्ता-जैसा कि ज्योतिषियों ने कहा था, जीर्ण वृक्षों में हरी-भरी छाया करनेवाला स्वयं कामदेव पुत्री के लिए घर बनकर आया है। Y. A "पुंछु। 3. A दोणि 14. F जु। 5. APण वि। 6. APS भाविउ । 7. 11. BK "मुहषैभहिं bul gloss in K मकरन्दश्चोतैः। 12. AP सुक्खहं रुक्ख: विल्लिहि। 8. P अण्णगई। 9. सोयासीणउ। 10.A वणलय। सुक्खसुरुक्खाएं। 13. B सयई। 14. B तरुवरु। 15. B आइट।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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