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महाकइपुष्फयंतबिरयउ महापुराणु हा पयाइ कि किउं पेसुण्णउं ___ हा किं पुरि परिभमहुं ण दिण्णउं । हा कुलधवलु केव" विद्धंसिउ हा' जयसिरिविलासु किं णिरसिउ। हा पई विणु सोहइ ण घरंगणु चंदाविवज्जि पं गयणंगणु। हा पई विणु दुक्खें पुरुष रुण्णउं हा पई विणु माणिणिमणु सुण्णउं। हा पई विणु को हारु थरि को कीलह सरहंसुः व सरवरि । पई विणु को जणदिविउ पीणइ कंदुयकील देव को जाणइ। हा पई विणु को एवहिं सूहउ पई "आपेक्खिवि मयणु वि दूहउ। हा पई विणु मियगोत्तससंकहु को भुयबलु समुद्दविजयंकहु । हा पई विणु 'सुण्णउं हियउल्लउं को रक्खइ मेरउं कडउल्लउं । छाररासि हूयउ पविलोयउ एंव बंधुवग्गे सो सोइउ । पंजलीहि मीणावलिमाणिउं *हाइवि सबहिं दिण्णउं पाणि।
घत्ता-वरिससएण कुमार मिलइ तुज्झु गुणसोहिउ। ___णेमित्तियहिं परिंदु एंव भणिवि संबोहिउ ॥7॥
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एत्तहि सुंदरु विहरंतउ दिट्ठउं गंदणु' वणु तहि केहउं
विजयणयउ सहसा संपत्तउ। महुँ भावई रामायणु जेहउँ ।
प्रजा ने इतनी दुष्टता क्यों की ? हाय ! उसे नगरी में क्यों नहीं घूमने दिया ? हे कुलश्रेष्ठ तुम कैसे नष्ट हो गये ? हाय ! जयश्री के विलास को क्यों निरस्त किया गया ? हाय, तुम्हारे बिना धर का आँगन शोभित नहीं होता, जैसे चन्द्रमा से शून्य आकाश। हाय, तुम्हारे बिना नगर दुःख से परिपूर्ण है। हाय, तुम्हारे बिना, माननियों का मन शून्य है। हाय, तुम्हारे बिना स्तनों के बीच कौन-सा हार है ? तुम्हारे बिना कौन सरहस के समान सरोवर में क्रीडा करेगा ? तुम्हारे बिना कौन जनदृष्टि को प्रसन्न करेगा ? हे देव, कन्दुक-क्रीडा कौन जानता है ? हाय, तुम्हारे बिना इस समय कौन सुभग है ? तुम्हारी तुलना में कामदेव भी असुन्दर है। हाय, तुम्हारे बिना अपने गोत्र के चन्द्र समुद्रविजय का बाहुबल क्या है ? तुम्हारे बिना हृदय शून्य है। अब कौन मेरे कटिसूत्र को बचाएगा। सबने उसे धूलि का ढेर हुआ देखा, और इस प्रकार बन्धुवर्ग ने उसके लिए शोक किया। सबने स्नान कर अपनी अंजलियों से मीनावलि के द्वारा मान्य पानी उसे दिया।
पत्ता-तब नैमित्तिकों ने राजा को यह कहकर सम्बोधित किया कि गुणों से शोभित तुम्हारा कुमार सौ वर्ष में मिल जाएगा।
(8) इधर, वह सुन्दर कुमार धरती पर विचरण करता हुआ शीघ्र विजयनगर पहुँचा। उसने वहाँ नन्दन वन 6. B कंम; P केण। 7.P हा हा सिरि । 8. B परु। 9.A कलहंसु। 10. 5 आपेक्खिबि। 11. P हियउन्लाई सुस्लर हियउल्लउ भुल्लई। 12. A सो सोयर, 5 संसोइ31 13. $ व्हायवि।
(8) 1. ARS गंदण।