________________
महाकइपुष्फयतविरयल महापुराणु
[83.6.4
5
सुललिउ सूहउ सयणादिरू' गउ अप्पणु सो' कत्यइ सुंदरु। उग्गउ सूरु कुमारु ण दीसइ हा कहिं गउ कहिं गउ पहु भासइ। कणयकोंतपट्टिसकंपणकर
राएं दसदिसु पेसिय किंकर। पुरि घरि धरि अवलोइउ उववणि अवरहिं दिलउ हयवरु पिउवणि। पल्लाणिवउ पट्टचमरंकिउ
तं अवलोइवि मडयणु सकिउ । लेहु लएप्पिणु णाहहु घल्लिउ तेण वि सो झड त्ति उव्वेल्निउ । रायह बाहाउण्णई णयणई
दिवई एयइं लिहियई वयणई। गंदउ पय चिरु विपियगारो णंदउ सुहु' सिवएवि भडारी। णंदउ परियणु णंदउ परवइ गउ वसुएवसामि सुरवरगइ ।
घत्ता-ता पिउवणि जाइवि सयणहिं जियविच्छोइङ' ।
__दड्ढु' सभूसणु पेउ हाहाकारिवि जोइउ" ॥6॥
10
ते' णव बंधव सहुं परिवारें सा सिवएवि रुयई परमेसरि हा कि जीविउं तिणु परिगणियउं
सोउ करति दुक्खवित्थारें। हा देवर परभडगयकेसरि । कोमलवउ हुयवहि कि हुणियउं।
गले में बाँध दिया। और सुललित, सुभग, स्वजनों को आनन्दित करनेवाला वह सुन्दर स्वयं कहीं चला गया। सबेरा हुआ, परन्तु कुमार दिखाई नहीं दिया। राजा कहता है- “वह कहाँ गया, कहाँ गया वह ?" राजा ने स्वर्णभाले, पटा (तलवार के आकार का शस्त्र) और कटारी हाथ में लिये हुए अनुचर दसों दिशाओं में भेजे। उन्होंने नगर में घर-घर में और उद्यान में खोजा। दूसरों ने मरघट में अश्ववर को देखा-काठी से सजा हुआ और पट्टचमर से अंकित। उसे देखकर योद्धागण आशंकित हो उठे। लेख लेकर उन्होंने राजा को दिया। उस पत्र से राजा भी शीघ्र उद्धेलित हो उठा। राजा की आँखें आँसुओं से गीली हो गयीं। उसने लिखे हुए ये वचन पढ़े-"मेरा बुरा चाहनेवाली. प्रजा चिरकाल तक आनन्द से रहे, आदरणीय शिवादेवी सुख से रहें, परिजन प्रसन्न रहें, राजा प्रसन्न रहें, स्वामी वसुदेव देवलोक के लिए चला गया है।" ___घत्ता-तब मरघट में जाकर, स्वजनों ने जीवरहित अलंकारों से रहित जला हुआ प्रेत हाहाकार करते हुए देखा।
अपने परिवार के साथ वे नौ भाई दुःख के बढ़ने से शोक करते हैं। वह परमेश्वरी शिवादेवी रोती है-शत्रुभट रूपी गज के लिए सिंह के समान हे देवर ! तुमने अपने जीवन को तृण के समान क्यों समझा ? हाय !
सुरवइगई। 10. P पिउवणु।।1.
3. B"कटल। 4. AB णयणादिरू। 5. AP कत्वइ सो। 6. Pवणे यणे। 7.APS एपई दिई। 8.5 सहुं। 9. s यिन्छोइयज । 1. दिट्ट दछ। 15. B जायउ; 5 जोइयउ।
(7) I. Aरोण वि बंधन। 2. B रुबइ। 3. AS Tणु। 4. PS कोमलंगु। 5. हुदवहे ।