________________
418 ]
महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
[102.13.7 होउ° संति संतह' दंगइयहु होउ संति सुयणहु संतइयहु । जिणपयपणमणवियलियगव्यहं होउ संति पीसेसहं भव्यहं । धत्ता-इय दिव्यहु कचहु तणउं फलु लहुं जिणणाहु पयच्छउ । सिरिभरहहु अरुहहु जहिं गमणु पुष्फयंतु तहिं गच्छउ ॥13॥
10
5
सिद्धिविलासिणिमणहरदूएं गिद्धणसघणलोयसमचित्तें सद्दसलिलपरिवड्डियसोत्ते विमलसरासयजणियविलासे कलिमलपबलपडलपरिचत्तें णइवावीतलायकयण्हाणे धीरे धूलीधूसरियों महिसयणयलें करपंगुरणे मण्णखेडपुरवरि णिवसंते भरहसण्णणिज्जें णयणिलएं पुष्प माइ... "जुगों
मुद्धाएवीतणुसंभूएं। सब्बजीवणिक्कारणमितें। केसवपुत्ते कासवगोत्तें। सुण्णभवणदेवलयणिवासें। णिग्घरेण णिप्पुत्तकलतें। जरचीवरवक्कलपरिहाणें। दूरयरुन्झियदुज्जणसंगें। मग्गियपंडियपंडियमरणें। मणि अरहंतधम्मु' झायतें। कव्वपबंधजणियजणपुलए। लइ अहिमाणमेरुणामकें।
हो। जिनका गर्व नष्ट हो गया है और जो जिनवर के चरणकमलों में नमन करनेवाले हैं, ऐसे सभी भव्यजीवों को शान्ति प्राप्त हो।
घत्ता-इस दिव्य काव्य का फल शीघ्र जिन भगवान् को अर्पित हो। श्री भरत और अर्हन्त का जहाँ गमन है, पुष्पदन्त वहाँ जाये।
सिद्धिरूपी विलासिनी के सुन्दर दूत, मुग्धादेवी के शरीर से उत्पन्न, निर्धन और धनवान में समान चित्त धारण करनेवाले, समस्त जीवों के अकारण मित्र, शब्दरूपी जल के बढ़ते हुए स्रोत से युक्त, केशव के पुत्र, कश्यपगोत्रवाले, विमल सरस्वती से विलास करनेवाले, शून्यमवन और देवमन्दिरों में निवास करनेवाले, कलिमल के प्रबल पटल से दूर, पुत्रकलत्र से रहित, नदी, बावड़ी और तालाब के जल में स्नान करनेवाले, पुराने वस्त्र
और वल्कलों के परिधानों को धारण करनेवाले, धीर, धूलधूसरित शरीर, दूर्जन के संग को दूर से छोड़नेवाले, धरतीरूपी शय्या और हाथ के प्रावरणवाले पण्डितों से पण्डितमरण माँगनेवाले, मान्यखट नगरी में निवास करनेवाले, अपने मन में अर्हन्त का ध्यान करनेवाले, भरत के अपने गृह में निवास करनेवाले, नय के घर
8. Areads a as band basa.9. AP सुपणहो। 10. A संतहो।
(14) सण। 2. P "सरासह 15. AP "देवउल । 4. P"सरहाणे। 5. A वीरें। 6. A दूरुनिमय 7. P अरहंतु देव । 8. AP "मण्णणिज्जे णियणिलए। 9.A कन्नबंधपयणिव' | 10. AP कयणा। 11. AP घुपपकें।