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महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
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दिणयरु दहs - धूलि तणु भइलइ किं अप्पाणडं अप्पुणु दंडहि करि वकील विउलणंदणवणि' मणिगणबद्धणिद्धधरणीयलि सलिलकील करि कुवलयवाविहि जुबराएं पडिवण्णु णिरुत्तउं पुणु णिउणमइसहाएं" वुत्तजं पुरयणणारीयणु" तुह रत्तउ णायरलोएं तुहुं बंधाविउ तासु धयगु तं तेण पारेक्खि
घत्ता - ता पडिहारणरेहिं एहउं तासु समीरिडं ।
घर
दुट्ठदिट्टि ललियंगई जालइ । बंधव तुहुं किं बाहिरि हिंडहि । झिंदुकील करहि घरप्रंगणि । रमणीकील' करहि सत्तमयति । तं णिसुणेवि वयणु कुलसामिहि । गयकइवयदियहिं अजुत्तरं । पहुणा णियलणु " तुज्झु णिउत्तउं । जोइवि" विहलंघलु" णिवडंत । रवइवय" णिरोहणु पाविउ । विमदिरणाम जोक्खिजं ।
हिण तुम्हहं राएं वारि ं ॥ 4 ॥
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तओ सो सुहद्दासुओ बूढमाणो ' घराओ पुराओ गओ कालिकाले
ण केणावि दिट्ठो विणिग्गच्छमाणो । अचक्खुप्पएसे तमालालिणीले ।
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तुम्हें सूर्य जलाता है, धूल से शरीर मैला होता है, खराब दृष्टियाँ सुन्दर अंगों को जलाती हैं, तुम अपने को अपने से क्यों दण्डित करते हो ? तुम विशाल नन्दनवन में वनक्रीडा क्यों करते हो ? अपने घर के आँगन में गेंद खेला करो, मणिसमूह से रचित चिकनी धरतीवाले सातवें तलघर पर स्त्री-क्रीडा किया करो, कुवलय वापिकाओं में जलक्रीडा करो। वह सुनकर कुमार ने कुलस्वामी के वचन को निश्चित रूप से मान लिया। कुछ दिन बीतने पर निपुणमति नामक सहायक मन्त्री ने यह अयुक्त बात कही- "राजा ने तुम्हें बन्धन में डाल दिया । पुरजनों का नारीजन तुममें अनुरक्त है, तुम्हें देखकर विकल होकर गिर पड़ता । इसलिए नगर के लोगों ने तुम्हें बँधवाया है। राजा के रोकनेवाले वचन तुम्हें मिले।" निपुणमति के इन वचनों की कुमार ने परीक्षा की और उसने राजमन्दिर ( राजभवन ) से निकलकर देखा ।
धत्ता - तब द्वारपालों ने उससे इस प्रकार कहा कि हितकारी राजा ने तुम्हारा घर (भवन) से निकलना मना कर दिया है। ।
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इस पर, उस सुभद्रा पुत्र वसुदेव को अहंकार उत्पन्न हो गया। और घर से बाहर जाते हुए उसे किसी ने भी नहीं देखा। रात्रि के समय, जबकि तमाल और भ्रमरों के समान नीले प्रदेश में कुछ भी दिखाई नहीं
( 4 ) 1. APS हरूह 2 APS अप्पणु 1 9. AP किं तुहुं। 4. 5 चिउले। 5. B करिहि । 6. ABP पंगणे 7.5 रमणीयकील 8. 5om. दिय। HP विगुणमड 10. X णियलु । 11. AP पुरवरणारी 12. 5 जोयवि। 13. S विडलंघलणु वडलउ 11. B वयण। 15. AP णिरिक्खि । (5) 1. B दुहु: S बोद 2. BS विभिगच्छ । 3. 5 अचक्खुपएसे।
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