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83.3.15]
महाकइयुष्फयतविरयउ महापुराणु
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कड़ियलि घरमज्जारु लएप्पिणु धाइव जणवइ हासु जणेप्पिणु। काहि वि कंडतिहि ण उदूहलि णिवडिउ' मुसलघाउ धरणीयलि। काइ वि चट्ट्यहत्थई जोइउ रंककरकई पिंडु ण ढोइउ। चित्तु' लिहंति का वि तं झायइ पत्तछेइ तं चेय णिरूवइ । जा तहिं णच्चइ सा तहिं णच्चइ जा गायइ सा तं सरि सुच्चइ" | जा बोल्लइ सा तहु गुण वण्णइ णियभत्तारु ण काइं वि मण्णइ । विहरतिहिं इच्छिज्जइ मेलणु भुंजंतिहिं पुणु तह कह सालणु । णिसि सोवंतिहिं सिविणइ दीसइ इय वसुएउ' जांब पुरि विलसइ। णरणाहहु कयसाहुद्धारें
ता पय गय सयल वि कूवारें। देव देव भणु किं किर किज्जइ विणु घरिणिहिं धरु केंव धरिज्जइ । मयणुम्मत्तउ पुरणारीयणु
वसुएबहु' उप्परि ढोइयमणु। णिसुणि भडारा दुक्करु जीवई जाउ जाउ पय कहिं मि पयावइ । घत्ता-ता पउरहं राएण पउरु पसाउ करेप्पिणु।
पत्थिउ रायकुमारु णेहें हक्कारेप्पिणु ॥३॥
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पर घर के मार्जार को लेकर लोगों में हँसी उत्पन्न करती हुई दौड़ी। धान्य कूटती हुई किसी का मूसल ऊखल के बजाय धरती पर गिर पड़ा। किसी ने करछुली हाथ में लिये हुए, उसे (कुमार को) देखा। उसने दरिद्र भिखारी के पात्र (खप्पर) में भोजन नहीं दिया। कोई चित्र लिखती हुई उसी का ध्यान करती है और पत्रच्छेद में उसी का निरूपण करती है। जो उस नगर में नृत्य करती है, वह उसी के सामने नृत्य करती है। जो गाती है, वह (अपने) स्वर में उसी की सूचना देती है। जो बोलती है, वह उसी के गुण का वर्णन करती है और अपने पति को कुछ भी नहीं मानती। विहार करती हुई उनके द्वारा वही (कुमार) चाहा जाता है,
और भोजन करते हुईं उनके लिए उसकी कथा ही व्यंजन है। रात्रि में सोती हुई उनके द्वारा वह स्वप्न में देखा जाता है। इस प्रकार जब कुमार वसुदेव नगर में विलसित हो रहा था, तब समस्त प्रजाजन हाथों में वृक्ष की शाखाएँ उठाकर करुण विलाप के साथ राजा के पास गये और बोले-'हे देव ! देव !! बताइए, क्या किया जाए. बिना गहिणियों के घरों को कैसे रखा जाए ? पुरनारीजन काम से उन्मद होकर वसुदेव के लिए अपना मन अर्पित कर चुका है। हे आदरणीय ! सुनिए, अब जीना मुश्किल है। हे प्रजापति ! अब प्रजा जाए तो कहाँ जाए?
धत्ता-तब राजा ने परिजनों पर प्रचुर प्रसाद करते हुए राजकुमार को बुलाकर प्रार्थना की।
3. B5 कतहि। 4. B विडिय। 5. B बटुल। 6.8 रंकहं करए।7. P चिन्हु । 8. A णिरूया। 9. P जहिं तहिं1 10. A गाया। 11.5 यसुएछु । 12. BP यसुदेयहु । 13. Sकयकारेप्पिणु।