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________________ 38] 183.2.1 महाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु (2) पासेइज्जइ का वि णियबिणि थिप्पइ णं अहिणवकालंबिणि । का वि तरुणि हरिसंसुय मेल्लइ काहि वि वम्महु वम्मई सल्लइ । सूहवगुणकुसुमहिं मणु वासिउं काहि वि मुहं णीसासें सोसिउं। णेहवसेण पडि चेलंचलु . काहि वि पायडु धक्कु थणस्थलु । काहि वि केसभारु चुउ' बंधणु काहि वि कड़ियलल्हसिउं 'पयंधणु। खलियक्खरइं का वि दर जंपई पियविओयजरवेएं कंपइ। चिक्कयंति' क' वि चरणहिं गुप्पई कवि पुरंधि णियदइयह कुप्पइ । मयणुम्मा मन्जाय . काहि निहियागिकुसु जायउं । 'लोहलज्जकुल भयरसमुक्कउं वरदेवरससुरयसुहिचुक्कउं"। काहि वि बउ पेम्मेण किलिण्णउं बिउणावेदु णियंबहु दिण्णउं। घत्ता-क वि ईसालुयकंत दप्पणि तरुणु 1पलोइवि ॥ विरहहुयासें दह मुय अप्पाणउं सोइवि ॥2॥ 5 10 तग्गयमण क वि मुहआलोयणि वीसरेवि सिसु सुग्णणिहेलणि। कोई सुन्दरी पसीना-पसीना हो उठती है, मानो अभिनव मेघमाला स्थापित कर दी गई हो। कोई तरुणी हर्ष के आँसू छोड़ने लगती है; किसी के मर्मों को कामदेव पीड़ित करने लगता है, किसी का प्रिय के गुणरूपी कुसुमों से सुवासित मन निश्वासों से सूख गया है। किसी का वस्त्रांचल स्नेह के कारण खिसक गया है और किसी का स्तनस्थल स्पष्ट रूप से प्रकट हो गया है। किसी का केशभार और बन्धन च्युत हो गया। किसी की साड़ी कमर से खिसक गयी थी। कोई लड़खड़ाते अक्षरों में कुछ भी कहती है और प्रिय वियोग के ज्वर में काँपती है। पैरों से चलती हुई कोई घबरा जाती है। कोई स्त्री अपने पति पर क्रुद्ध हो उठती है। किसी का ह्रदय कामदेव से उन्मत्तं और मर्यादा से रहित, एकदम निरंकुश हो गया है एवं लोक-लज्जा और कुल के भयरस से मुक्त, पति देवर ससुर और सुधी जन से चूक गया। किसी का शरीर प्रेम से आर्द्र हो उठा। उसने अपने नितम्बों को दुगुना आवेष्टित कर लिया। पत्ता-कोई अपने ईर्ष्या करनेवाले तरुण पति को दर्पण में देखकर अपने को सुखाकर, विरहञ्चाला में जलकर मर गयी। कोइ स्त्री कुमार में लीन होकर, उसका मुख देखने के लिए सूने घर में बच्चे को भूलकर और कमर (2) I. S णिणि । 2. $ "कालिबेिणि । ५. AP चुय"। 4. " पईघणु, ST पइंधणु। 5. A विक्कमति; P चिकर्माते। 6. P घरणहि क वि। 7. ABP लोथलज्जIR.H"रसभय 19.5 रस्तु। 10. P ससरय।HA सुहितुक्कडं। 12. A बडणायेद । 13. 5 पलोयथि। (3)। उग्गग्रणयण का यि भुयालोयणि । 2. A सुहयालोयणि।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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