SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 4161 महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु [102.12.1 (12) भद्दबाहु लोहंकु भडारउ आयारंगधारि' 'जगसारउ । एयहिं सब्बु सत्थु मणि माणिउ सेसहिं एक्कु देसु परियाणिउ । जिणसेणेण वीरसेणेण वि जिणसासणु सेविवि मय ते ण वि। पुथ्व्यानि सुई णिगय भरहें राएं रिउवहुदावियविरहें। पुणु सयरेण सच्चवीरंके पुहईसेण सगोत्तससकें। भावमित्तमित्तइयवीरें जमजुइणा वि सुछ गंभीरें। धम्मदाणवीरहिं मघवंतें जुज्झवीरणरणाही हसंते। सीमंधरराएण तिविट्टे अरुहवयणु आयपिणउं इलें। पुणु सयंभु पुरिसुत्तमु णामें पुरिसपुंडरीएं जयणामें" || पुरिदत्तपस्थिवेण" कुणालें गोविंदेण गंदगोवालें। णिवसुभोमणामें विक्खाएं अजियजएण वि जएं वि महाएं। उग्गसेण "महसेणे इच्छा आजिएं। सेणिएण पई पच्छइ। एम्व रायपरिवाडिइ णिसुणिउ धम्मु महामुणिणाहहिं पिसुणिउ । सेणियराउ धम्मसोयारह पच्छिल्लउ वज्जियभयभारहे। ताहं वि पच्छइ बहुरसणडिया भरहें काराविउ पद्धडियइ। पढिवि सुणिवि आयपिवि णिम्मलि पचडिउं 'मामइएं इय महियलि। 15 (12) भद्रबाहु और आदरणीय लोहाचार्य विश्व में श्रेष्ठ आचारांग धारण करनेवाले थे। इन आचार्यों ने शास्त्रों को अपने मन में धारण कर लिया था। शेष लोग, उनके एक भाग को जानते थे। जिनसेन और वीरसेन भी जिनशासन की सेवा करके संसार से विदा हो चुके हैं। पूर्वकाल में शत्रुओं की पत्नियों को विरह दिखानेवाले भरत ने शास्त्र सुना था। फिर, सागर, सत्यवीर, अपने गोत्र का चन्द्र पृथ्वीसेन, मित्रभाव, सूर्य के समान कान्तिवाले और गम्भीर मित्रवीर्य, धर्मवीर्य, दानवीर्य, मघवा, युद्धवीर्य, राजा सीमन्धर और त्रिपृष्ठ ने इष्ट अरहन्त के वचन सुने। फिर, स्वयम्भू, पुरुषोत्तम, प्रसिद्ध पुरुष पुण्डरीक, राजा सत्यदत्त, राजा कुणाल, नारायण, विख्यात राजा सुभौम, अजितंजय, विजय, उग्रसेन, महासेन और बाद में स्वेच्छा से अजित (प्रश्न करनेवालों में श्रेष्ठ) हैं। इस प्रकार क्रमबद्ध परिपाटी से महामुनियों द्वारा कथित धर्म को सुना। धर्म के भयभार से रहित, श्रोताओं के साथ बाद में राजा श्रेणिक हुआ। उसके भी बहुत बाद में नवरस से संकुल, पद्धडिया शैली में इसकी रचना मन्त्री भरत ने करवायी। उसे पढ़-सुन कर, मामइया द्वारा धरती पर प्रगट किया गया। (12) 1. A एयारंगधारि। . A जयसार; P जसमाग्छ । १. AP सेकि मयगिरिपवि। . A पुब्बघालि णिणि सुइभरहें; P पुयपालि जितागाई मई परहें। 3. A बहुरि। 6. A सच्छवीरके 17. A पहई सेस | B. K मित्ताइविवीरें and eloss मित्रवीर्यः 19. APPणरणाहें संते। 10. AP जयकामें। ]]. A पुरिसदत्तमायेण; पुरिसदमपत्थियेण। 12. A omits this line. IS. A महमेण डियस्थे। 14. A णिच्चलमाणसेहि पुणु पत्थे। 15. A "भवभारई। 15. A भवकलि स्यकले। 17. A धम्ममहरःP मम्महार।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy