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________________ 102.11.151 [415 महाकइपुष्फयंतविरया महापुराणु (11) कयतिजोयसुणिरोहु' अणिवउ किरियाछिण्णई झाणि परिहिउ । णिहयाघाइचउक्कु अदेहउ । वसुसमगुणसरीरु णिपणेहउ । रिसिसहसेण समउं रयछिंदणु' सिद्धउ जिणु सिद्धत्यहु णंदणु। तियसविलासिणि णच्चिउ तालहिं । अमरिंदहिं णवकुवलयमालहिं। णिव्वुइ वीरि गलियमयरायउ इंदभूइ गणि केवलि जायउ। सो विउलइरिहि गउ णिव्वाणहु कम्मविमुक्कउ सासयठाणहु ।। तहिं वासरि उप्पण्णउं केवलु . मुणिहि सुधम्महु पक्खालियमलु । तण्णिव्वाणइ जबूणाम पंचम दिवणाणु हयकामहु । दि सु दिमित्तु अवरु वि मुणि । गोवद्धणु चउत्यु जलहरझुणि। ए पच्छइ समत्थ सुयपारय णिरसियमिच्छायम णिरु णीरय । पुणु वि विसहजइ पोट्ठिलु खत्तिउ जउ गाउ वि सिद्धत्यु हयत्तिज। दिहिसेणंकु विजउ बुद्धिल्लउ गंगु धम्मसेणु वि णीसल्लउ। पुणु णक्खत्तउ पुणु जसवालउ पंडु णाम धुवसेणु गुणालउ। घत्ता--अणुकसर अप्पउ जिणिवि थिउ पुणु सुहदु जणसुहयरु। जसभदु अखुटु" अमंदमइ णाणे णावइ गणहरु ॥11॥ 10 तीनों योगों का निरोध कर अमुक्तरूप वह समुच्छिन्न क्रियापाती नामक चौथे शुक्ल ध्यान में स्थित हुए। चार धातिया कर्मों का नाश कर वह अदेह आठ गुणों के शरीरवाले एवं रागरहित हो गये। एक हजार मुनियों के साथ पापबल का छेदन कर सिद्धार्थनन्दन सिद्ध हो गये। नवकुवलयमाला के समान इन्द्रों और तालों के साथ देवांगना ने नृत्य किया। भगवान महावीर के निर्वाण प्राप्त कर लेने पर मद और राग से रहित गौतम गणधर केवली हो गये। कर्मों से विमुक्त वह भी विपुलाचल पर्वत पर शाश्वत स्थानवाले निर्वाण गये। उसी दिन सुधर्मा मुनि को पापों को प्रक्षालित करनेवाला केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। उनके निर्वाण प्राप्त कर लेने पर काम को नष्ट करनेवाले, जम्बूस्वामी को पाँचवाँ ज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त हुआ। नन्दी, नन्दीमित्र, मुनि अपराजित और मेघ के सामन ध्वनिवाले चौथे गोवर्धन मुनि हुए। बाद में ये श्रुतज्ञान में पारंगत, मिथ्यात्वतम का नाश करनेवाले अत्यन्त निष्पाप और समर्थ हुए। फिर विशाखाचार्य, प्रोष्ठिल, क्षत्रिय, जय, नागसेन, पीड़ा का हरण करनेवाले सिद्धार्थ, धृतिसेन, विजय, बुद्धिल्ल, गंगदेव, निःशल्य धर्मसेन, ये द्वादशांग का अर्थ कहने में कुशल हुए, फिर नक्षत्र, जयपाल, पाण्डु और गुणालय धुवसेन, ___घत्ता-बाद में कंसार्य (ग्यारह अंगों के जानकार) आत्मा को जीतकर स्थित थे। फिर, जनों का कल्याण करनेवाले महान् सुभद्र और यशोभद्र हुए, अमन्द बुद्धिवाले जो ज्ञान में गणधर के समान थे। 6. A क्रन्तियतमणिसिहि। 7. A दुलारे। (1) I. A "सुणिरोह अणिष्टिक “सुणिरोहें प्रणिहिउ2. AP किरियाछणए। 3. AP णिहयअघाइ। 4. A अरिजिंदणु। 5. AP अगिदहिं अधिक सिहिजाला। 6. A "पिचामचभय णीरय; "मियामय भव णीस्य । 7. A पुणु विसाहु जयपोदिलु खतिउ। 8. A अणुकंपउ। 9. A सुहद्दजिणु सुञहरू। 10.A सखदु मंदगइ णाणे।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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