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________________ 4141 महाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु [102.9.9 आइकप्पजुयलइ जणमणहरि भावणवाणामरजोइसघरि। भोयभूमिणर होति मरेप्पिणु कम्मभूमिरुह कहमि गणेप्पिणु । पवर सलायपुरिस मयरद्धय विज्जाहरसुरवरपुज्जियपय । छट्ठइ कात्ति दुट्ठ सुकणिट्ठा माणव वीरजिणिदें दिट्ठा। पत्ता-एक्कोरुय पीरुय मूय णर सक्कुलिकण्णा अण्ण वि। कपणाचिय भाविय जिणवरिण लंबकण्ण ससकण्ण वि ॥७॥ (10) आससीहमहिसयकोलाणण वग्घउलूयवयण सुहमाणण। मक्कडमुह' थहमुह मसिणिहमुह गयमुह गोमुह घणमुह तडिमुह । आदसणमुह लंगूलंकिय वेसाणिय कुमणुय जिणपुक्किय । एए अंतरदीवणिवासिय गोत्तमेण मगहेसह भासिय। अंततित्थणाहु वि महि विहरिवि जणदुरियाई दुलंघई पहरिवि । पावापुरवरु' पत्तल मणहरि णवतरुपल्लवि वणि बहुसरवरि। संठिउ पविमलरयणसिलायलि रायहंसु णावइ पंकयदलि। दोण्णि दियह पविहारु मुएप्पिणु सुक्कझाणु' तिजउ झाएप्पिणु । घत्ता-णिब्यत्तिइ कत्तिइ तमकसणि पक्खि चउद्दसिवासरि । थिइ ससहरि दुहहरि' साइचइ पच्छिमरयणिहि अवसरि ॥10॥ 10 ज्योतिषवासी-इन तीन निकायों में उत्पन्न होते हैं। अब मैं कर्मभूमि में उत्पन्न होनेवाले मनुष्यों की गणना करके बताता हूँ। श्रेष्ठ शलाकापुरुष कामदेव, और देवों तथा विद्याधरों से पूजितपद मनुष्य, तथा छठे काल में दुष्ट और नीच मनुष्य वीर जिनेन्द्र ने देखे हैं। यत्ता-एक पैरवाले, बिना पैरवाले, मूक, शत्कुली (कीली, शंकु) के समान कानवाले, और भी कानों के आवरणवाले लम्बवर्ण, शशकर्ण (खरगोरा के समान कानवाले) मनुष्यों को जिन भगवान ने देखा है। (10) अश्व, सिंह, भैंस और सुअर के मुखवाले, बाघ, उल्लू के मुखवाले, शुभ मुखवाले, वानर मुख, मेषमुख, गजमुख, गोमुख, घनमुख, तडिन्मुख, दर्पणमुख, पूँछ से युक्त, सींग से सहित और ऊँचा बोलनेवाले कुमनुष्य जो अन्तर्वीप के निवासी हैं। गौतम ने मागधेश से कहा कि अन्तिम तीर्थंकर महावीर धरती पर विहार कर और लोगों के दुर्लध्य पापों को नष्ट कर पावापुर पहुँचे और सुन्दर, अनेक और नववृक्ष पल्लवों से युक्त वन में एक विमल रत्नशिलातल पर इस प्रकार बैठ गये, मानो कमलदल पर राजहंस हो। विहार छोड़कर, दो दिन तक तीसरे शुक्लध्यान का ध्यान कर___घत्ता-कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की चौदस को चन्द्रमा के दुःखहर स्वातिनक्षत्र में स्थित रहने पर रात्रि के अन्तिम प्रहर में5. AP "सुरवर । 6. एए भासिय णिच जिणवरेण । (10) 1. A मकडमुह वामुह मसिणहमुह न ममइपच्छयमुह पसिणिहमुह। 2. A जिणधुक्किय। 3. A तिनु तित्यणाहु महि। 4. AP "पुरयारे। 5. AP सुझझाणु तश्य।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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