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________________ 102.7.41 महाकइपुप्फयंतविस्यउ महापुराणु [411 सेणिउ पहु सुपासु उययंकर पोट्टिलु कडचंचु वि हयसंकउ। खत्तिउ सर्छ "णाम संखालउ णंदणु पुणु सुणंदु सुगुणालउ । पुणु ससंकु केसउ धमकिउ पेम्भकम्मु तोरणसण्णंकिउ। रेवउ वासुएउ बलु अवरु वि भगलि विगलि दीवायणु णररवि। कणयक्खउ पायंतउ णारउ चारुपाउ सच्चइसुउ सारउ। आइजिणेसरु तहिं महु भावइ सउ परिसहं सोलत्तरु जीवइ। जाणमि सत्तरयणिमाणंग छेइल्लउ दूरुज्झियसंग। पंचसयाइं तुंगु धणुदंडहं दिहि हरंतु मयरद्धयकंडह। पुबह कोड़ि देउ जीवेसइ णामावलिय ताहं जई घोसइ । माह --उ परपु महाफामु जि ना पुणु एग्देट सुसासणु। हयपासु सुपासु सयंपहु वि सव्य भूइ मलणासणु ॥6॥ देवउत्तु कुलउत्तु उअंका मुणिसुबउ पावारि विरायउ' चित्तगुत्तु जिणु विरइयसंवरु अणियत्ति वि णामें रिसिसारउ पोटिलु जयकित्ति वि गयपंकउ। णिक्कसाउ सुविउलु हयमायउ। अरुहु समाहिगुत्तु ससयंवरु। विमलु वि जर सुरपाउ भडारउ । 6. क्षत्रिय, 7. श्रेष्ठी, 8. शंख, 9, नन्दन, 10. सद्गुणालय सुनन्द, फिर, 11. शशांक, धर्म से युक्त, 12. केशव, 13. प्रेमकर्म, 14. तोरण नाम से अंकित, 15. रैवत, 16. बलवान वासुदेव, एक और, 17. भगलि, 18. विगलि, 19. द्वैपायन, 20. कनकपाद, 21. नारद, 22. चारुपाद, 23. श्रेष्ठ और 24. सत्यकिपुत्र । उनमें आदि तीर्थंकर सोलहवें कुलकर. (महापद्य) मुझे अच्छे लगते हैं, वह सोलह अधिक सौ (116) वर्ष जीवित रहेंगे। मैं जानता हूँ उनका शरीर सात हाथ ऊँचा होगा। वे चतुर होंगे और परिग्रह से दूर होंगे। उनमें अन्तिम तीर्थंकर (अनन्तवीर्य) का शरीर पाँच सौ धनुष ऊँचा होगा और वह कामदेव के तीरों के धैर्य का हरण करनेवाले होंगे। देव एक करोड़ वर्ष पूर्व जीवित रहेंगे। यति उनकी नामावलि की घोषणा इस प्रकार करते हैं घत्ता-!. शाश्वत श्रीवाले पहले महापद्म, फिर 2. सुशासनवाले सुरदेव, 3. बन्धन को नष्ट करनेवाले सुपार्श्व, 4, स्वयंप्रभ, और 5. मल का नाश करनेवाले सर्वात्मभूत । 6. देवपुत्र, 7. कुलपुत्र, 8. उदक, ५. प्रौष्ठिल, 10. गतपंक जयकीर्ति, 11. विशेषरूप से शोभित पापारि मुनिसुव्रत, 12. अरनाथ, 13. अपाप, 14. निष्कषाय, 15. सुविपुल, 16. निर्मल, 17. संवर की रचना करनेवाले चित्रगुप्त, 18. स्वयं का वरण करनेवाले-समाधिगुप्त, 19. स्वयम्भू, 20. ऋषिश्रेष्ठ अनिवर्ति, 21. विमल, (6) 1. A कइयतु । कवडचंचु । 2. AP सेखु सडु And gleass षष्ठः। 9. AP संखणामालउ। 4. AP गिलि विगिलि । S. AP सच्च। 17)1. A विद्यारउ वियराउ। 2. P रिसिसाया । ३. A सुरयाउ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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