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महाकपुष्यंतविरय महापुराणु
चक्कवट्टिणामावलि' गिज्जइ । लंबदंतु पहु भणिउतईयउ । सिरिभूइ बि सिरिकंतु अदीणउ । अवरु वि चित्तपुव्वु भणु वाहणु । णिव' अरिट्ठसेणु सव्वंतिउ । चंदु महाचंदु वि विष्णासमि ।
पत्ता - चक्कहरु मिहरु णं उग्गमिउ हउं अक्खमि महमंदु वि। हरिचंदु सीहचंदु वि अवरु पुण्णिमचंदु सुचंदु वि ॥ 7 ॥
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चरमु अनंतवीरु वंदिज्जइ भरहु दीहदंतु वि पुणु बीयउ गूदु चउत्थउ पुणु सिरिसेणउ पउम महापमंकु संसंतणु विमलबाहु णरणाहं सुखतिउ वि" भविस्ससीरि वि णव भासमि
सिरिचंदु वि ए भासिय हलहर गंदि दिमित्तु' वि जाणिज्जइ दिभूइ हरि होइ चउत्थउ छट्टु महाबलु सत्तम् अइबलु णवम् दुविट्टु चिट्ठ णरकेसरि कालसमइ तइयम्मि समत्तइ
णव होहित मणोहर सिरिहर । नंदसिएणु तिज्जउ "भाणिज्जइ । पंचमु बलु संगामसमत्थउ । अमु भूतिविट्टु पालियछलु । ताहं वइरि तेत्तिय से पडिहरि । सुसमदुसमकालइ संपत्तइ ।
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1. मावि
णामलि बि 5. AP सुसंत। 6. AP सुखति। 7. A नृय नु । 9 AP महिल ( 8 ) 1A दुमित्तु । 2 A पर्याणि ।
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22. जय, 23. देवपाल और अन्तिम 24 अनन्तवीर्य । इनकी बन्दना की जाएगी। अब चक्रवर्तियों की नामावलि कही जाती है - पहला भरत, दूसरा दीर्घदन्त, तीसरा फिर लम्बदन्त कहा जाता है। चौथा गूढ़दन्त और पाँचवाँ श्रीषेण, छठा श्रीभूति, सातवाँ अदीन श्रीकान्त, आठवाँ पद्म, नौवाँ शान्त महापद्म, दसवाँ विचित्रवाहन, ग्यारहवाँ क्षमावान राजा विमलवाहन और सबसे अन्तिम ( अर्थात् बारहवाँ ) राजा अरिष्टसेन है। हे राजन् ! मैं भावी बलभद्रों का भी कथन करता हूँ - 1. चन्द्र और 2. महाचन्द्र का भी वर्णन करता हूँ ।
यत्ता -- 3. चक्रधर चक्रवर्ती सूर्य की तरह उदित होता है, मन्दमति होते हुए भी मैं उनका वर्णन करता हूँ। 4. हरिश्चन्द्र 5. सिंहचन्द्र, 6 वरचन्द्र, 7 पूर्णचन्द्र तथा 8 सुचन्द्र
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और 9. श्रीचन्द्र भी हैं, जो हलधर ( बलभद्र ) कहे जाते हैं ये नौ ही मनोहर एवं श्री को धारण करनेवाले होते हैं। पहला नन्दी, दूसरा नन्दीमित्र को जानिए। तीसरा नम्दीसेन कहा जाता है, नन्दीभूति नारायण चौथा है, संग्राम में सुप्रसिद्धबल पाँचवाँ नारायण है, छठा महाबल और सातवाँ अतिबल आठवाँ छल का पालन करनेवाला त्रिपृष्ठ, और नरसिंह द्विपृष्ठ नौवाँ नारायण होगा। इतने ही उनके शत्रु प्रतिनारायण होंगे। तीसरा