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________________ 410 महाकापुष्फयंतविरयउ महापुराणु [ 102.5.7 10 तहत्थपरिमाणे दिछु ण चुक्कइ केवलणाणे। पढमु कणउ बीयउ कणयप्पहु कणयराउ कणयउ णरपहु।। अबरु कणयपुंगमु णलिणंकउ णलिणप्पहु कुलगयणससंकउ। णलिणराउ अवरु वि णलिणद्धउ रु णावइ सई मयरद्ध। राज पलिणपुंगमु पउमक्खउ पउमप्पहु 'वसंतु पच्चक्खउ । पउमराय पउमद्धउ राणउ णिवइ पउमपुंगमु बहुजाणउ। अवरु महापउनु वि सोलहमउ कहइ महामुणि दूरुज्झियमउ। एयहुं कालि कालि गंदइ पय णरणाहहं परिवहइ संपय। जणवउ होसइ सन्बु सुसीलउ सिहिासेद्धण्णे भोयणयालउ। घत्ता-सुहमेलइ कालई तइयइ संपत्तइ सउ अद्दहं। पाउ' जीउ धरति मरंति ण वि वयणुण्णडई जिणिदह ॥5॥ पय जे होहिंति तेत्यु तित्थंकर बद्धउँ जेहिं कम्मु जगखोहणु ताह महापुरसिहं मणि मण्णह बूढदप्प कंदप्पखयंकर। अरहतत्तणु मोक्खारोहणु। णामई चउवीसहं आयण्णह। हाथ का उसका शरीर होगा। समय बीतने पर उसका भला होगा। पहला कुलकर शरीर से चार हाथ उन्नत होगा, ऐसा वीतराग और अन्तिम कुलकर सात हाथ प्रमाण का भगवान ने कहा है। केवलज्ञान द्वारा देखा गया कभी गलत नहीं होता। पहला कनक, दूसरा कनकप्रभ, फिर कनकराज, कनकध्वज कुलकर, फिर एक और (पाँचवाँ) कनकपुंगम, फिर नलिन, फिर कुलरूपी गगन का चन्द्र नलिनप्रभ, नलिनराज, एक और नलिनध्वज जो रूप में मानो स्वयं कामदेव होगा, राजा (दसवाँ) नलिनपुंगम, पद्य, पद्मप्रभ जो मानो प्रत्यक्ष वसन्त था, राजा (तेरहवाँ) पद्मराज और राजा पद्मध्वज, और राजा बहुज्ञानी पद्मपुंगम। और एक दूसरा सोलहवाँ महापद्य-जिन्होंने मद को दूर से छोड़ दिया है, ऐसे महामुनि कहते हैं। इनके समय में प्रजा प्रसन्न होगी, राजाओं की सम्पत्ति बढ़ेगी। समस्त जनपद सुशील होगा। आग से पका हुआ अनाज उनका भोजन होगा। पत्ता-सुख की योजना करनेवाले तीसरे काल के प्रारम्भ होने पर जब सौ वर्ष पूरे होंगे, तो जीव न तो दूसरों को मारेंगे और न आत्मघात करेंगे। जिनेन्द्र भगवान के वचनों की उन्नति होगी। (6) उसमें जो दर्प काम का क्षय करनेवाले तीर्थकर होंगे जिन्होंने जग को क्षुब्ध करनेवाली और मोक्ष का आरोहण करानेवाली अर्हन्त प्रकृति का बन्ध किया है, उन महापुरुषों को तुम मन में मानो। उन चौबीस के नाम सुनो-1. श्रेणिक प्रभु, 2. सुपार्श्व, 3. उदक, 4. प्रोष्ठिल, 5. शंका को आहत करनेवाले कटपू, 5. A पक्षणपंचक्खन। 6. AP तइया, कालए। 7. AP पर। 8. AP वयणु ण टला। 9. AP रिसिंदह।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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