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________________ J 102.5.6] महाकपुष्प- तिथिरच महापुराणु महिरुहवेल्लिजालु उच्छ्रिज्जइ सुरसिंधुहि सिंधुहि खयरडहु जीविहिंति पर पावसरीरें डायार होण जड़ माणव के वि खुद्द विबर पइसेप्पणु विससमाणु जलहरु वरसेसइ सत्त सत्त दियहई जइ भासइ अवसप्पिणि किर एत्थु समप्पइ जीवहु पलयकालु संपज्जइ । आसंधिवि बेइय वेयहु । सरिजलसंभवजीवाहारें । दुत्थिय बाहत्तरिकुलसंभव । अच्छिहिंति अप्पाणु भरेष्पिणु । खारु तिक्खु पाणिउ वरिसेसइ । चित्ता णाम भूमि सम दीसइ । पुणु वि भडारउ भणइ वियप्पs | घत्ता - अइदुस्समु दुग्गमु पइसरइ ओसप्पिणिहि पवेसइ । माउं विकाउ वि मई भणिउ चिरसंखाइ समासइ ॥4॥ (5) वरिसिहिंति पुणु खीरपओहर' अमयमेह सिंचंति धरायलु रसवरिसें रसु धरणि धरेसइ कमपवुद्धि* पुणु दुस्समि पावइ तिरयणियद्धरयणिदेहुल्लउ पहिलउ चउहत्थुण्णइ काएं तेत्तिय दियहई जणवयदुहहर । होसइ सयलु सयलु संचियफलु । णीरणियरु विचरहु सिइ । बरिसई वीस जाम ता जीवइ । कालें जंतें होसइ भल्लउ । कुलयरु भासिउ वियलियराएं। [ 409 15 20 ५. उज्ज। 4. AP विरसेसइ । (5) 1. AP छीर। 2. AP गरणियरउं 3. कमे पवृद्धि 41 हत्येने काएं हत्थूर्ण काएं। 5 और लताओं का जाल उच्छिन्न हो जाएगा। जीव के लिए प्रलयकाल होगा। गंगा और सिन्धु नदियों के तटों पर और विजयार्थ पर्वत की वेदी पर आश्रय लेकर कुछ मनुष्य अपने पापशरीर से तथा नदीजल में उत्पन्न जीवों के आहार से जीवित रहेंगे। नष्टाचार, हीन और मूर्ख मनुष्य दुःस्थित एवं बहत्तर कुलों में जन्म लेनेवाले होंगे। कोई क्षुद्र बिलों में प्रवेश कर अपना भरण-पोषण करते रहेंगे। मेघ विष के समान बरसेंगे । खारा और कड़वा पानी गिरेगा, सात-सात दिन तक ऐसा यतिवर कहते हैं। यहाँ आकर अवसर्पिणी काल समाप्त होगा। आदरणीय गणधर फिर कहते हैं और उसका विस्तार करते हैं- घत्ता - फिर उत्सर्पिणीकाल में दुर्गम अतिदुःखमा काल प्रवेश करेगा। मनुष्य की आयु और शरीर भी वही होगा जो पुरानी संख्या में संक्षेप से कहा है । (5) फिर, उतने ही दिन जनपदों का दुःख दूर करनेवाले दूध के मेघ बरसेंगे। अमृत मेघ धरती का सिंचन करेंगे। समस्त कलायुक्त संचित फल होगा। जल की वर्षा से धरती रस को धारण करेगी। विवरों से जलसमूह निकलेगा । दुःखमा काल में क्रमशः इसकी वृद्धि होगी और मनुष्य बीस वर्ष तक जीवित रहेगा। साढ़े तीन
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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