SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 410
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 408 ] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [102.3.8 संणासणेण मुएवि कलेवरु समभावें णिज्झाइवि जिणवरु। चत्तारि वि जणाई धम्मिट्ठइं पढमसग्गु जाहिंति वरिटई। मज्झण्हइ पत्थिउ णासेसइ बभणधम्मु खयह जाएसइ। चाउवण्णु कुलधम्मु गलेसइ देसधम्मु जिम्मूलु हवेसइ। घत्ता-पासंडि तिढि ण तवसि तहिं पउ तहिं खत्तियसासणु। अवरण्हइ उपहइ मंदिरहु णासइ झत्ति हुयासणु ॥3॥ 5 तइयह अइदुस्समु पइसेसइ भणिउ तिअद्धहत्यमाणंगउ णरयतिरिक्खहं होतउ आवइ कालें तें माणवसत्थे परिहेव्वउं तरुपल्लवणिवसणु भो भूवइ भविस्सपरमेसर वीरिउ बलु आउ वि ओहट्टइ असुहहं दुब्भगदुस्सररुक्खह खंचियभोयहं पसरियरोयह जइयहं छहकालपरमावहि माणुसु वीसवरिस जीवेसइ। बहुवेलासणु पावपसंगउ'। मुउ तहिं जि पुणु संभउ पावइ। विणु कप्पासविणिम्मिववत्थे। फलभोयणु अवरु वि णग्गत्तणु। अइदुस्समकालति णरेसर। सोलहवरिसइं जीविउ चट्टइ। कसणसरीरहं दीणहं मुक्खहं। हत्थमेतु तणु होसई लोयह। तइयहुं फरुसत्तें फुट्टइ महि। और वरिष्ठ प्रथम स्वर्ग में जाएँगे। मध्याह्न में राजा का नाश हो जाएगा। ब्राह्मणधर्म क्षय को प्राप्त होगा। चातुर्वर्ण्य व्यवस्था और कुलधर्म नष्ट हो जाएगा। देशधर्म भी निर्मूल हो जाएगा। __घत्ता-पाखण्डी, त्रिदण्डी होंगे, तपस्वी नहीं होंगे और न वहाँ क्षत्रिय-शासन होगा। उष्ण अपराह्न में घर से आग नष्ट (विलीन) हो जाएगी। तब से अतिदुःखमा काल प्रारम्भ होगा। मनुष्य बीस वर्ष जीवित रहेगा। वह साढ़े तीन हाथ के बराबर शरीरवाला कहा गया है, उनेक वार भोजन करनेवाला और पापों से लिप्त। नरक और तिर्यंच गतियों से होकर आएगा और मरकर, फिर वहीं जन्म प्राप्त करेगा। समय बीतने पर मानवसमूह, कपास से निर्मित वस्त्रों के बिना, तरुपल्लयों के वस्त्र पहिनेगा, फलों का भोजन करेगा, और नग्न रहेगा। हे भावी परमेश्वर राजन् ! अतिदुःखमा काल में वीर्य, बल और आयु भी घट जाती है। केवल सोलह वर्ष का जीवन रहता है। अशुभ, दुर्भग, दुःस्वर, रूखे, कृष्णशरीर, दीन, मूर्ख, भोगों से युक्त, रोगों से व्याप्त लोगों का एक हाथ का शरोर होगा। जव छठे काल की अन्तिम अवधि समाप्त होगी, तब कठोरता से धरती फट जाएगी। वृक्षों 5. बंउ धम्म; । धम् 7. Krecurds ap: अथवा हेउधम्मु युक्तिस्वरूपम्। (4) 1. रावसपसंगर। 2. A1 °दुस्सरदुक्रवहं।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy