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102.3.7]
महाकइपुण्यंतविरयउ महापुराणु
जिणसासणभत्तें असतें । एक्कु समुद्दोवमु जीवेसइ । किह जिणसासणु णउ पणविज्जइ । वसुद्धबुद्धिपरिणामें । अभयदाणु बहुजीवहुं दिउं। थिउ महि भुंजमाणु णीसल्लउ ।
घत्ता - पुणु होसइ घोसइ गणपवरु" मइ चउमुहि कयहरिसहं । जलमंथणु दुज्जणु अवरु पहु वीसहं सहसहं वरिसहं ॥2॥ ( 3 )
समयपहावण गुण सुअरंतें पढमणरयगुरुविचार पडेसइ खद्धउ पावें सो किं किज्जइ तहु पुत्तें अजियंजवणामें जिणसम्मत्तु तच्चु पण्उिं रक्खउ देवें लक्खिउ भल्लउ
पच्छिमसूरि णाम वीरंगउ संजइ सव्वसिरि त्ति मुणेज्जसु फग्गुसेण सावइ अइसुब्बय दुस्समति होर्हिति णिरुत्तउ जयहुँ थक्कर पंचमकालउ अणु वि तहिं पण्णारह वासर कत्तियमासपदमपक्खतइ
होसइ तवसिहि 'हुणिवि अगंगउ । अग्गलु सावउ हियइ घरेज्जसु । कोसलणयरिणिवासि गिरावय । एवं सम्भइाहें बुत्तउ । चउयालीसमाससंखालउ । तइयहुं भो' सेणिय माणियघर । साइरिक्खि दिणयरि 'उवसंतइ ।
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6. A गुणपवरु।
(3) IAP हुलियागंगर। 2. AP अगव्यय । 3. AP एउं। 4. AP हो। 5. A उपयंतए P उदयंतए ।
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नहीं होने पर वह किसी असुर के द्वारा गारा जाएगा। वह प्रथम नरक के महाविवर में पड़ेगा और एक सागर प्रमाण जीवित रहेगा। वह पाप से क्षय को प्राप्त होगा। सो क्या किया जाय ? जिनशासन को क्यों नहीं प्रणाम किया जाये ? जिसका शुद्ध बुद्धि का परिणाम बढ़ गया है, ऐसे अजितंजय नाम का उसका पुत्र जिनेन्द्र द्वारा सम्मत तत्त्व ग्रहण करेगा और बहुत से जीवों को अभयदान देगा। देव से रक्षित वह भला लगेगा और निःशल्य होकर धरती का भोग करेगा।
धत्ता - गणप्रवर (गौतम) घोषित करते हैं कि चतुर्मुख की मृत्यु के बाद हर्ष से भरे बीस हजार वर्ष बीतने पर एक और दुर्जन जलमन्थन ( अन्तिम कल्कि) राजा होगा ।
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अन्तिम मुनि वीरांगद होंगे जो तप की ज्वाला में कामदेव को नष्ट करेंगे। तुम सर्वश्री आर्यिका को मानोगे और अग्निल श्रावक (अन्तिम) को हृदय में धारण करोगे। फल्गुसेना अन्तिम श्राविका होगी। सुव्रतों को धारण करनेवाले निरापद ये अयोध्यानगरी के निवासी होंगे। ये दुःखमा काल के अन्त में होंगे, ऐसा निश्चय रूप से सम्मतिनाथ ने कहा है। और जब पंचमकाल के चवालीस भाह और पन्द्रह दिन शेष रह जाएँगे, तब धरती को माननेवाले हे श्रेणिक ! कार्तिक माह के प्रथम पक्ष (कृष्णपक्ष ) में स्वातिनक्षत्र में सूर्य के अस्त होने पर, संन्यासपूर्वक अपने शरीरों को छोड़कर, सद्भाव से जिनवर का ध्यान कर, वे चारों धर्मनिष्ठ