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________________ 406 ] महाकइपुम्कयतविरपर महापुराणु {102.1.14 15 घत्ता-अइदुम्मुह चउमुहु णाम सुउ सयल पुहइ भुंजेसइ। सामरिसहं वरिसई पीणभुउ सो सत्तरि जीवेसइ ॥३॥ (2) सो चालीस वरिस रज्जेसरु तीस वरिस कुमरत्तें सुंदरु। वसि णेसइ सयलई पासंडई मासगासमइरारससोंडई। दरिसियमोक्खमहापुरपंथह पडिकूलउ होसइ णिग्गंथहं।। वसि ण होति किं मझु दियंबर । मंति भणंति देव कयसंवर। करभोयण' गिरिकंदरमंदिर पभणइ णई णवंतु महुँ मुणिवर। एयहं पाणिपत्तदिण्णोवणु हिप्पट्ट परघरलद्धउं भोयणु। तं णिसुणेवि सरिच्छ जमवेसें भई जाहिति सरायाएसें। ते हरिहिति गासु भयवंतहं णिभयाहं परघरि भुजंतह। तं पेच्छिवि अधम्मु णिच्छयगणि । भुंजिहिँति णउ भोज्जु महामुणि। जाइवि गावपावसंघायहु किंकरहिं अक्खिउ णियरायहु। देव दु? णिग्गंथ तुहाणइ । णउ जीवंति सगुरुसंताणइ । तं णिसुणिवि दंडहुं 'जइणरवइ । तियखदंडु जाएसइ णरवई। मुक्कधम्मु खग्गे दारेव्वउ सो केण वि असुरें मारेवउ । 10 घत्ता-अत्यन्त दुर्मुख चतुर्मुख नाम का वह पुत्र समस्त धरती का उपभोग करेगा। स्थूलबाहु वह (कल्कि अमर्ष, अक्षमादि से भरा हुआ सत्तर वर्ष जीवित रहेगा। चालीस वर्ष राज्येश्वर के रूप में और तीस वर्ष कौमार्य के रूप में। वह सुन्दर मांसाहार और मदिरारस से उन्मत्त सभी सम्प्रदायों को अपने वश में कर लेगा। लेकिन मोक्षरूपी महानगर का पथ प्रदर्शन करनेवाले निर्ग्रन्थ (दिगम्बर) साधुओं के विरुद्ध हो जाएगा। (वह पूछेगा) कि क्या दिगम्बर मेरे वश में नहीं होंगे ? मन्त्री कहेंगे-हे देव । ये संवर करनेवाले, हाथ में भोजन करनेवाले और गिरिगुफाओं में निवास करनेवाले हैं। राजा कहेगा ये मुनिवर मुझे नमस्कार नहीं करते। इनका हाध रूपी पात्र का भात और दूसरे के घर से प्राप्त भोजन छीन लिया जाये। यह सुनकर, यमरूप के समान योद्धा अपने राजा के आदेश से जाएँगे और ज्ञानवान, निर्भय, दूसरे घर भोजन कर रहे उनका आहार छीन लेंगे। यह अधर्म देखकर, निश्चयगुणी महामुनि आहार ग्रहण नहीं करेंगे। अनुचर गर्वरूपी पाप के समूह अपने राजा से जाकर कहेंगे-हे देव दुष्ट निर्ग्रन्थ मुनि आपकी आज्ञा से नहीं, परन्तु अपने गुरु की परम्परा से जीवित रहते हैं। यह सुनकर वह राजा जैनमुनियों को दण्डित करने के लिए तीव्र दण्डवाला हो जाएगा। मुक्तधर्म वह तलवार से नष्ट होगा। समय (शास्त्र सिद्धान्त, जिनसिद्धान्त) की प्रभावना के गुण का स्मरण करते हुए जिनशासन के भक्तों द्वारा सहन 19.AP खुद्द पुतु। 11. A/ दुमड। (2) I. A कयभीषण। 2. AP परघरे दिग्णाः । * AP जङ। 4. AP पायगाव । 5. AP जडवरबइ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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