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102.1.13]
पहाकइपुष्फयंतविरयड महापुराण
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दुत्तरसयमो संधि वहुजाणउ राणउ पुणु भणइ सेणिउ गोत्तम अम्हहं ।। अवसप्पिणि 'वगणहु सप्पिणि ब दरिसणि भावइ' तुम्हहं ॥ ध्रुवकं ।
ओसप्पिणि एवहि भणु मुणिवर गणिय' भणइ हो णिसुणि महाणर। 'भो दसारकेसरि तुटुच्छर
जइयहुं थंति तिणि संवच्छर। तझ्यहं आसोयंतइ ससिमुह सिद्ध होइ सिद्धत्थहु तणुरुहु । एक्कवीससहसइँ सम्मत्तइं। दुस्समु कालु पहोसइ दुम्मड़। तहिं होहिंति परिद सतामस सयवरिसाउस सयल बि माणुस । सत्तरणितणु लावावज्जिय पेम्मपरव्यस इंदिवणिज्जिय। ताहं भुक्ख रसु लोहिउं सोसइ तित्ति" तिकालाहारें होसइ। पावकम्मु बहुदोसभयंकर दीसिहिति चउवण्ण ससंकर। सुद्ध" ण राय ण वणिय ण दियवर खल होहिंति सयल णिग्घिणयर। वरिससहसमाणइ गइ दुस्समि साइलिउत्तगवरिपरसंग। सिसुपालें पुहईमहाएविहि होसइ पुत्तु" खुदु सियसेविहि ।
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एक सौ दूसरी सन्धि बहुज्ञानी राजा श्रेणिक फिर कहता है-हे गौतम ! हम लोगों का अवसर्पिणी काल आपके शब्दों और आपके दर्शन से उत्सर्पिणी के समान जान पड़ता है।
हे मुनिवर ! इस समय अवसर्पिणी बताइए। गौतम गणधर कहते हैं-हे महामानव ! सुनो। हे कुलसिंह और अप्सराओं को सन्तुष्ट करनेवाले (श्रेणिक) : जब चतुर्थकाल के तीन साल बाकी बचते हैं, तब दक्षिणापथ की अपेक्षा कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के दिन (आसोयंतइ) सिद्धार्थ के पुत्र महावीर सिद्ध होते हैं। इसके बाद इक्कीस हजार वर्ष में समाप्त होनेवाला दुर्मति दुःखमा काल होगा। उसमें राजा लोग तामसी स्वभाव के होंगे। सभी मनुष्य सौ वर्ष की आयुवाले होंगे। सात हाथ शरीरवाले और कान्ति से रहित। प्रेम के वशीभूत
और इन्द्रियों के अधीन। भूख उनके रक्त और रस का शोषण करेगी। तीन बार भोजन करने से तृप्ति होगी। चारों वर्ण पापकर्मा बहुदोषों से भयंकर और वर्णसंकर से सहित दिखाई देंगे। न राजा शुद्ध होगा और न वणिक और न ब्राह्मण। सभी दुष्ट और निघृणतर (क्रूर) होंगे। दुःखमा काल के एक हजार वर्ष बीत जाने पर मनुष्यों के संगम पाटलिपुत्र नगर में राजा शिशुपाल और श्री से सेवित पृथ्वी महादेवी से एक क्षुद्र पुत्र होगा। .-.
(1)। Aणयगहे। 2. AP दीसह । 5. A भणु एवहिं। 4. A गणि पभणह। 5. Aदुच्छर । HAP सिद्धत्ययतणुरुह । 7.AP सहसः जिणु भासद। R. AP नरिसहो दुस्तमु काल पहासइ। . A धममहोण सुहझाणपिग्लिय। 10. AP तित्ति नि कचनाहारें। I]. AP पायम। 12. A सुदु ।