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________________ | 101.16.13] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु पत्ता - लइ लइ वउ मई दिण्णु होहि धम्मसद्धालुउ । रतिहि किं पिम खाइ इ वा ॥5॥ ( 16 ) तं गिणिवि कय मासहु णिवित्ति बंदिउ गुरु दिष्णपयाहिणेण णिउ कालु तेण तिव्वें तवेण एक्कहिं दिणि सुक्खाहारु' भुत्तु अत्थवणकालि' कूयंतरालु" ता पेच्छइ उ रविकिरणभारु णिग्गउ पुणु पेच्छिवि' सूरदित्ति कूयइ पइसइ णीसरइ जाम अत्यमि भाणु संजाय कालि मुउ तण्डइ सुद्धइ भावणाई एवं कुबेरदत्तहु सुचक्खु तं णिसुणिविरइणिब्विण्णदेहु णियसिरि णिवणयणाणंदणासु पडिवण्ण तेण तवचरणवित्ति । संखीणु वणासइभोयणेण । परिणामें सुद्धे णवणवेण । तहु तहs सोसिउ सब्बु गतु । किर पइसइ जा तिसियउ सियालु । अवलोइउ तेण घणधयारु । कूवइ पड़ठु पुणु नियइ रत्ति । दो तिणिण पंच धाराउ ताम । गिज्जियतमालि पसरियतमालि । संचियसुहाइ खचियमणाइ । धमित्तहि सुउ पीइंकरक्खु । वयहलु मणिवि आयउ सगेहु । संदिण्ण वसुंधरणंदणासु । [ 403 5 10 मत्ता - मेरा दिया हुआ व्रत ले लो, धर्म में श्रद्धालु बनो। रात्रि में तुम कुछ भी मत खाना, चाहे तुम्हें खूब भूख भी लगी हो ।" 16) यह सुनकर उसने मांस से निवृत्ति ले ली। उसने तप के आचरण की वृत्ति स्वीकार कर ली। प्रदक्षिणा करते हुए उसने गुरु की बन्दना की । वनस्पति के भोजन से वह अत्यन्त दुबला-पतला हो गया। उसने तीव्रतप और नये-नये शुद्धभावों से अपना समय बिताया। एक दिन उसने सूखा आहार लिया। प्यास से उसका सारा शरीर सूख गया। सूर्यास्त के समय प्यासा श्रृंगाल जैसे ही कुँए के भीतर प्रवेश करता है, वैसे ही उसे सूर्य का किरणभार दिखाई नहीं दिया। उसने घना अन्धकार देखा। वह बाहर निकला और वहाँ सूर्य का प्रकाश देखकर वह फिर कुएँ में घुस गया। फिर, वहाँ रात्रि देखता है। इस प्रकार वह दो-तीन, पाँच बार जब तक कुँए में घुसता है और उससे निकलता है, तब तक सूर्य डूब जाता है और तमाल को जीतनेवाली और तम की पंक्ति को फैलाती हुई रात हो गयी। प्यास से सुख का संचय करनेवाली, मन का नियन्त्रण करनेवाली भावना से वह मर गया। इस प्रकार वह कुबेरदत्त और धनमित्रा का प्रीतिंकर नाम का सुनयन पुत्र हुआ ।" यह सुनकर रति से निवृत्त है देह जिसकी ऐसा वह सेठ व्रत के फल को मानकर अपने घर आया। उसने अपने नेत्रों के लिए आनन्ददायक अपनी लक्ष्मी वसुन्धरा के पुत्र को दे दी। वह मगधेश्वर के श्रेष्ठ नगर ( 16 ) 1. AP सुकाहार | 2. AP अत्यवणचालि । 3. AP कूवंतरालु। 4. AP पेक्खिये AP रत्ति B. A पसरियउ महारयतिमिरयत्तिः P पसरिय तमालणिह तिमिरयत्ति । 7. A कुबेरदेवहो ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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