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________________ 402 ] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु [101.15.6 मणहरवणि आया बणिवरेण परिपुच्छिय धम्मु विसुद्धभाव घरि' धम्मु होइ एयारहंगु किं वण्णमि विद्धसियअणंगु खममद्दवाइगुणगणणिहाणु भणु भणु भयवंत भवंतराई ता भासइ रिउमइ मुणि विरोइ वैदिउ पुज्जिउ राएं जणेण इहु को वि भुयाउ धल्लेिउ गरोह वफामि अज्जु ता गयइ लोइ टुक्कळ गोमाउ तुरंतु जाम चिरदुक्किएण जायउ सियालु मुई मुइ एबहिं पाविट्ट पाबु तं णिसुणिवि जंबुउ उवसमेण इसिणाहें चिंतिउं भव्बु एहु इय चिंतिवि भासिउ लेण तासु जाइवि बंदिवि मउलियकरण। रिजुमइ भासइ भो गलियगाव । दसणवयसामाइयपसंगु। जइधम्मु वि वज्जियसव्वसंगु। ता पमणइ वणिवइ भावभाणु। महुं चरियई परितोसियणराई। गुरु सायरसेणु तवंतु जोइ। पडपडहसंखकयणीसणेण। पुरवरबाहिरि भेरीसरेहि। णिरु' णिच्चल मुणि वि समंतजोइ। मुणिणा मुयजोए वुत्तु ताम' । तुहुं अज्जु वि दुग्णयभावणालु । मा पावें पावहि तिव्वतावु। थिउ परियाणियणाणक्कमेण। सिज्झेसइ होसइ लहु अदेहु। तुहुं मुइवि ण सक्कहि किं पि मासु। 15 20 श्रेष्ठ ऋजुपति और विपुलमति नामक महामुनि मनोहर उद्यान में आये। सेठ ने जाकर हाथ जोड़कर बन्दना की और धर्म पूछा। गलितगर्व और विशुद्धभाव ऋजुमति मुनि कहते हैं- "दर्शन, व्रत और सामायिक से सहित गृहस्थ-धर्म ग्यारह प्रकार का होता है। कामदेव को ध्वस्त करनेवाले और सब प्रकार के परिग्रह से रहित यतिधर्म का क्या वर्णन करूँ जो क्षमा, मार्दव आदि गुणसमूह का निधान है।" तब सेठ पूछता है कि हे पदार्थ-प्रकाशक ज्ञानवान ! मेरे जन्मान्तरों और लोगों को सन्तुष्ट करनेवाले मेरे चरित्रों का कथन करिए। इस पर रागरहित ऋजुमति मुनि कहते हैं-"गुरु सागरसेन योगतप कर रहे थे। राजा और जनों ने उनकी पटुपटह और शंखों के शब्दों के साथ पूजा-वन्दना की। (सियार सोचता है) मनुष्यों ने भेरी के शब्दों के साथ किसी मरे हुए व्यक्ति को नगरबर के बाहिर फेंक दिया है। लोगों के चले जाने पर आज मैं स्वाद से इसे खाऊँगा। उसे निश्चल समझकर सियार तुरन्त वहाँ जैसे ही पहुँचा मुनि ने मन के योग से कहा"तुम पुराने पाप से सियार हुए हो, आज भी तुम दुर्भावनावाले हो। हे पापात्मा ! तुम इस समय पाप छोड़ो, छोड़ो। पाप से तम तीव्र ताप को प्राप्त मत होओ।" यह सनकर सियार उपशमभाव से स्थित हो गया। ज्ञानक्रम से जाननेवाले मनिनाथ ने यह जान लिया कि यह भव्य है। यह सिद्धि को प्राप्त होगा और शीघ्र ही अशरीरी होगा। यह सोचकर उन्होंने उससे कहा क्या तुम मांस भी नहीं छोड़ सकते ? (15) I. घरधम्। 2. AP परिजोलिय" | 3. A फफायिय अन्ज । 4. AP थिउ णिच्चलु मुणि सम्मत्तजोइ। 5. A ताम; A adds after this : मय पण्यवत आला | H. A गयजाएं। 7. A adds after this : मा णासहित जम्मु पलासणेण ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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