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________________ 101.15.5] [40] 15 महाकइपुष्कयंतविरयउ महापुराण णियां परवइभवणहु सा कुमारि कोक्किय सुविवक्खण 'णायकारि। वइवरु आउच्छिउ धम्मजुत्तु महिणाहें सो घणमित्तपुत्तु। से णियपरियाणिउ सिठ्ठी सव्यु पुणु भणि वयणु परिगलियगव्यु'। पुचि देवय कि । पंदिवि पुज्जिवि भत्तीभरण। परियाणइ एह ण का वि भंति ता राएं पुजिवि सा सुयंति। पुच्छिय जबणीइ तिरोहियोग को पावइ देविहि तणिय भंगि। तहु णायदत्तचिलसियाई कहियाई महायणणिरसियाई। कपदोसह पाविट्ठहु अणि? तं णिसुणिवि परवइ तासु रुठ्ठ। किर हरइ दब्बु दंडइ अणेउ ता बारिउ कुंअरें तरणितेउ। तं पेच्छिवि तहु सुयणत्तसारु महिवइणा जाणिबि णिब्वियारु। घत्ता-तहु णियसुय दिग्ण पिहिवीसुंदर णामें। परिणिय पसयच्छि णं मिलति रइ कामें ॥14॥ (15) बहुरइसुहसासवसुंधराइ कण्णाई समेउ वसुंधराइ । अण्णु वि दिण्णउ सुललियभुवाउ बावीस तासु वणिवरसुयाउ। अवरु वि तहु दिपण अद्धरज्जु पुण्णेण कासु सिज्झइ ण कज्जु । अण्णहिं दिणि सायरसेणसूरि मुउ संणासेण अणंगवेरि । अण्णहिं दिणि चारणभुयणचंद रिउ विउलमइ ति महामुणिंद 20 बुलवाया गया। राजा ने धनमित्र के पुत्र प्रीतिंकर से धर्मयुक्त वृत्तान्त पूछा। उसने अपना जाना सारा वृत्तान्त बता दिया। और फिर उसने गर्व से रहित ये शब्द कहे-दूसरों से क्या, भक्तिभाव से पूजा और बन्दना कर देवी से ही पूछा जाए; क्योंकि यह जानती है, इसमें जरा भी भ्रान्ति नहीं है। तब राजा ने सुकान्तर की पूजा कर परदे में प्रच्छन्न शरीरवाली उससे पूछा। उस देवी की भंगिमा को कौन पा सकता है ? उसने महाजनों द्वारा निन्दनीय नागदत्त की चेष्टाओं का वर्णन किया। दोष करनेवाले उस पाधी के उस अनिष्ट को सुनकर राजा उस पर अत्यधिक कुपित हो गया। राजा (उसके) धन का अपहरण करता है और उस अन्यायी को ण्ट देता है। तब कुमार ने (सूयी के समान तेजवाले उसे (राजा को) मना किया। उसकी इस सुजन श्रेष्ठता को देखकर और उसे निर्दोष जानकर, वत्ता-उसे अपनी पृथ्वीसुन्दरी नाम की कन्या दे दी। विशाल आँखोंवाली वह ब्याह दी गयी, मानो रति काम से मिली हो। (15) प्रचुर रतिसुखरूपी धान्य की भूमि वसुन्धरा कन्या के साथ उसे और भी बाईस सुन्दर भुजाओंवाली वणिक्वर कन्याएँ दी गयीं। और भी, उसे आधा राज्य दिया गया। पुण्य से किसका काम सिद्ध नहीं होता। दूसरे दिन कामदेव के शत्रु सागरसेन मुनि संन्यास से मृत्यु को प्राप्त हुए। एक दिन चारणऋद्धिधारी मुनियों में 6. AP गय। 7. AP णायघारि। B. A सिद्ध: 9. AP परिगलिउ गछु । 10. AP जवर्णीयणिरोफियंगि।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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