________________
101.12.4]
महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु
[ 397
ता मुक्क विज्ज गय कहिं मि जाम अप्पुणु' दुक्क्छ सो भीम ताम। रे रे कुमार हणु हणु भणंतु असि भामिळ भीसणु धगधगंतु। तं वंचिवि' सुहडें दिण्णु घाउ घाएण जि णिवडिउ खयरराउ । कण्णइ पोमाइउ गयविलेब तुहं साहसरयणणिहाणु देव । पई होतें हउं हुई सलग्य णिण्णाह वि लइ वट्टमि महग्य । इय भणिवि ताई भासणत्यु अहिसिंचिउ सिरिकलसहिं पसत्थु। परिहाविउ दिव्बई अंबराई
मणिकणयमउडकुंडलवराई। पुच्छंतहु तरुणहु हारिणीहिं अक्खिउं वरचामरधारिणीहिं। घत्ता-सहुं रज्जेण कुमारि पणयंगई णिरु पोसइ । अम्हारी पहु धूय तुम्हहं पणइणि होसइ ॥11॥
(12) ता भणइ कुमारि' सुवणवण ताएण दिण्ण जगि होइ कण्ण। इयरह कह परिणिज्जइ अजुत्तु ता संकमियउ तहिं णायदत्तु । ते सहसा णिग्गय पुरवराउ णं बंधुर सिंधुर 'सरबराउ। अवियाणियदूसहपिसुणचारु पुणु पुरपहि पल्लट्टउ कुमारू।
तब उसने विद्या छोड़ी। वह जब तक कहीं जाये, तब तक भीम स्वयं वहाँ आ गया। 'हे कुमार ! मार मार' कहते हुए, उसने धकधक करती हुई अपनी भीषण तलवार घुमायी। उसे बचाकर सुभट कुमार ने आघात पहुँचाया, और विद्याधर राजा उस आघात से धरती पर गिर पड़ा। कन्या ने उसकी प्रशंसा की कि हे गवरहित देव ! तुम साहस रूपी रत्न के खजाने हो। तुम्हारे होने से मैं श्लाघनीय हो उठी। बिना स्वामी के होते हुए भी मैं इस समय महाघ हूँ (मूल्यवान हूँ)। यह कहकर, भद्रासन पर बैठे हुए प्रशस्त उसका उसने श्रीकलशों से अभिषेक किया। उसे दिव्य वस्त्र, मणि, कनक-मुकुट और श्रेष्ठ कुण्डल पहिनाये। कुमार के पूछने पर, उत्तम चामर धारण करनेवाली दासियों ने कहा__घत्ता-कुमारी राज्य के साथ स्नेहांगों का पोषण करेगी। हे राजन् ! हमारी यह कन्या तुम्हारी प्रणयिनी होगी।
( 12 ) तब स्वर्णवर्णवाली वह कुमारी कहती है कि पिता के द्वारा दी गयी कन्या से विवाह किया जाता है। दूसरे ढंग से विवाह करना अयुक्त है। इतने में नागदत्त वहाँ आ गया। वे शीघ्र ही उस श्रेष्ठ नगर से निकले,
(11) 1. AP अप्पणु। 2. A चित। 3. AP मणिकडय। 4. A कुंडलधराई। 5. AP कुमार। (12) 1. AP कुमारु। 2 P इयरह परिणिज्जड़ णिरुत्तु। 3. AP सुरसराउ।