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________________ 396 | [101.10.3 महाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु तं णिसुणिवि तंणिहणेक्कणिर्छ। दट्ठोठु दुछु आरुट्ठ सुठ्ठ। महसेणहु पेसिउ तेण पत्तु कि धरियउं पई महुं तणउ सत्तु । तं णिसुणिवि महुं ताएण समरि । जुज्ञप्पिणु चालियचारुचमरि। सो भीमु धरिवि संखलहिं बद्ध बलवंतु वि कुलकलहेण खद्ध । पुणु मित्तु करेवि हिरण्णवम्मु सो मुक्कउ दिण्णउं रज्जु रम्मु। णउ खमइ तो वि आबद्धरोसु इच्छइ हिरण्णवम्महु विणासु । संसाहिय रक्खसविज्ज तेण । मारिउ हिरण्णवम्मउ खणेण। विद्धंसिउ पुरु महु जणणु बद्ध आवेसइ जोयहुं मई मयंधु । तं णिसुणिवि सिरिपीइंकरेण सयणत्यु खग्गु लइयां करेण। स जातु हत्धि जो जिणइ जुज्झु इंदहु वि ण संगरि होइ वज्झु। थिउ गोउरि सुंदरु छण्णदेहु । एत्यंतरि भडु संपत्तु एहु। णियविज्ज भीम आइट्ठ तासु रणि वग्गंतहु असिवरकरासु । घत्ता-विज्जाइ पवुत्तु चरमदेहु किह मारमि । मणु भणु णरणाह अवरु को वि संघारमि ou 15 प्रतिष्ठित हो गया। शत्रु (हिरण्यवा) अपने चाचा के पास आया। यह सुनकर कि हिरण्यवर्मा का निधन हो गया है, उसका एकमात्र निष्ठावान दुष्ट भीम ओठ चबाता हुआ, एकदम क्रुद्ध हो उठा। उसने महासेन के लिए पत्र भेजा कि तुमने मेरे शत्रु को अपने यहाँ क्यों रखा ? यह पढ़कर मेरे पिता ने, जिसमें सुन्दर चमर चल रहे हैं, ऐसे युद्ध में लड़कर उस भीम को श्रृंखलाओं से बाँध लिया। बलवान व्यक्ति भी कुलकलह से नष्ट हो जाता है। फिर उसने हिरण्यवर्मा को मित्र बनाकर उसे मुक्त कर उसका (भीम का) सुन्दर राज्य दे दिया। लेकिन आबद्ध-क्रोध भीम तब भी क्षमा नहीं करता है और हिरण्यवर्मा का विनाश चाहता है। उसने राक्षस विद्या सिद्ध कर ली और एक क्षण में हिरण्यवर्मा को मार डाला। उसने नगर को ध्वस्त कर दिया और मेरे पिता को मार डाला। वह मदान्ध अब मुझे देखने के लिए आएगा। यह सुनकर श्री प्रीतिंकर ने सेज. पर पड़ी हुई तलवार अपने हाथ में ले ली। वह तलवार जिसके हाथ में होती है, वह युद्ध में इन्द्र से भी वध्य नहीं होता। वह सुन्दर छिपकर गोपुर में खड़ा हो गया। इसी बीच यहाँ वह सुभट आया। युद्ध में असिवर हाथ में लेकर गरजते हुए उस पर (प्रीतिकर पर) भीम ने अपनी विद्या को आदेश दिया। पत्ता-विद्या ने कहा-वह चरमशरीरी है। उसे कैसे मारूँ ? हे स्वामी ! कहिए कहिए, किसी और का मैं संहार कर सकती हूँ। 2. AP Bणणेकणिछ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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