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महाकइपुष्फयंलविश्वर महापुराणु
[101.6.1
तेणक्खिउँ जोविङ मासमेतु तुह दीसइ भो वणिवइ' णिरुत्तु । आयण्णिवि तं पइसरिवि परि मणु फेडिवि धयसंणिहियमयरि । अहिसित्तई कलिमलवज्जियाई जिणबिंबई वणिणा पुज्जियाई।। संताणि णिहिउ सुउ णायदत्तु अप्पुणु आहरु सरीरु चत्तु। मुउ वीसदिवससंणासणेण हुउ सुरवरु भूसिउ भूसणेण। भाएं पुच्छियउ कुबेरदत्तु भणु पिउणा किं तुह सारवित्तु । संदरिसिउं णेहपरब्बसेण
ता तेण वुत्तु णित्तामसेण। तुहं पढमलोहभावेण गत्यु किं जिंदहि जणणु जए कपत्थु। धणु दाणे देहु वि णिरसणेण णिट्टविउ जेण जिणगयमणेण । तहु 'तुहूं किं दूसणु करहि भाय जसु वंदणिज्ज जगि जाय पाय। अण्णहिं दिणि सरस सुमिट्ठ तिख सायरसेणहु तें दिण्ण भिक्ख। दढभत्तिइ लहुए भायरेण
धणमित्तइ सहुँ मउलिकरण। पुणु पुच्छिउ जइवइ मज्झु पुत्तु कि होइ ण होइ गुणोहजुत्तु । ___घत्ता-जइ डिंभु ण होइ तो सरीरु तक्तावें। .... आसोसमि देव ता गुरु कहइ अगावें ॥6॥
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उन्होंने कहा- "हे सेठ ! तुम्हारा जीवन (निश्चयपूर्वक) एक माह का और दिखाई देता है।" यह सुनकर और नगर में प्रवेश कर, काम से अपने मन को दूर कर सेठ ने कलिमल से रहित जिनबिम्बों का अभिषेक और पूजन किया। कुलपरम्परा में नागदत्त को स्थापित किया और खुद ने आहार एवं शरीर का त्याग कर दिया। बीस दिन के संन्यासमरण के बाद वह मृत्यु को प्राप्त हो गया और अलंकारों से अलंकृत देव हुआ। भाई (नागदत्त) ने कुबेरदत्त से पूछा-'बताओ तुम्हें पिता ने कितना श्रेष्ठ धन दिया ?" तामसभाव से रहित स्नेहभाव से अभिभूत होकर उसने कहा- "तुम पहले से ही लोभभाव से ग्रस्त हो, विश्व में कृतार्थ अपने पिता की निन्दा क्यों करते हो ? जिनदेव भगवान में लीन मन होकर जिन्होंने दान से धन और अनशन से शरीर त्याग दिया, जिनके चरण पूज्य हो गये हैं, हे भाई ! तुम उनके लिए दोष क्यों लगाते हो ?" एक दूसरे दिन, दृढभक्त छोटे भाई ने धनमित्रा के साथ हाथ जोड़कर सागरसेन मुनि के लिए सरस, मीठा
और तीखा आहार दिया। फिर उसने यतिवर से पूछा-"मेरा गुणसमूह से युक्त पुत्र होगा या नहीं ?" ____घत्ता-यदि पुत्र नहीं होना है, तो हे देव ! मैं शरीर को तप के ताप से सुखा डालूँगा।" तब गुरु बिना किसी अहंकार के कहते हैं
(6) | A पणियर। 2. A सहि। 9. AP मलु। 4.
घयसणिहयसिहरि। 5. Pणाएं। 6. A घत्यु। 7.AP किं दूसणु तुई।