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महाकइपुप्फयंतबिरयड महापुराणु
[101.3.22
घत्ता-ता पडहु णिवेण देवाविउ धणु देसमि।
भुंजावइ पुत्तु जो तह दुक्खु हरेसमि ॥3॥
परिचत्तकारियणुमोयणेण दढधम्में पासुयभोयणेण। भुंजाविउ सुंदरु उवणिएण णिच्च पि जीवजीवियहिएण। सों वट्टइ णिब्बियडिल्लाएण बारहवरिसइं णिस्सल्लएण। दुब्बलु हूयउ तिव्ये तवेण मुउ संणासें सोसियभवेण। संभूयउ सो बंभिंदसग्गि सुरु विज्जमालि' मणिदित्तमग्गि । चनारि वि तहु प्रवरच्छराउ जंबूणामहु रइकोच्छराउ। जावउ भज्जाउ मनोहराउ देविउ उत्तुंगपयोहराउ। जाएसइ सो संपण्णणाणु मेल्लेचि असंजमु चरमठाणु। जिह सो तिह भुजिवि सग्गसोक्खु जाएसइ सायरदत्तु मोक्छु। इय भासिउ सयलु वि गोत्तमेण मगहेसह संतें सत्तमेण । अण्णहिं दिणि सम्मइसमवसरणि पभणइ सेणिउ तेलोक्कसरणि । गुणपुंगम बहुकलिमलहरेण किं कयउं आसि पीईकरेण। जेणेहउं दीसइ चारु गत्तु
ता सच्चउ भासइ मारसत्तु ।
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तास
घत्ता-तब राजा ने यह मुनादी करायी-"जो मेरे पुत्र को भोजन करा देगा उसे मैं धन दूंगा और उसका दुःख दूर कर दूंगा।"
दृढ़वर्मा ने कृत, कारित और अनुमोदना से रहित, जीव के जीवन के लिए हितकारी प्राशुक भोजन ले जाकर प्रतिदिन उस सुन्दर को कराया। वह बारह वर्ष तक विकाररहित निःशल्यभाव से रहा। तीव्रतप से वह दुर्वल हो गया और संसार को नष्ट करनेवाले संन्यास से मरण को प्राप्त हुआ और मणियों से प्रदीप्त मार्गवाले ब्रह्मेन्द्र स्वर्ग में विद्युन्माली देव हुआ। उसकी चार प्रमुख अप्सराएँ जम्बूस्वामी को कामकुतूहल उत्पन्न करनेवाली, ऊँचे स्तनोंवाली, सुन्दर पत्नियाँ होंगी। असंयम को छोड़कर, सम्पूर्ण ज्ञान को उपलब्ध कर वह वरम स्थान (मोक्ष स्थान) को प्राप्त होगा। जिस प्रकार वह, उसी प्रकार सागरदत्त भी स्वर्गसुख को भोगकर मोक्ष जाएगा।" इस प्रकार शान्त और उत्तम गौतम गणधर ने मागधेश श्रेणिक के लिए यह सब कथन किया। एक अन्य दिन, त्रिलोक के शरणरूप महावीर के समवसरण में राजा श्रेणिक कहता है-“हे गुणश्रेष्ठ ! कति के अनेक पापों का हरण करनेवाले प्रीतिंकर मुनि ने ऐसा (पूर्वजन्म में) क्या किया कि जिससे वह सुन्दरशरीर हुआ है ?" इस पर कामशत्रु गणधर उससे सच-सच कहते हैं
६.P-जा पुत्तु ।
(4) I.AP णीसतएण। 2. विज्जुमालि। 3. A परपठाणु। 4. P सग्गु सोक्षु।