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________________ 101.3.21] महाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु [389 जइ मुक्ककामरइ' करइ बप्प तो जिंदणिज्जु सो णिब्बियप्प। आयण्णहि सुंदर कहिं मि कालि सुहं पंथिउ जंतु वणंतरालि। दलकुसुमफलाचलिरससलग्धि णिवडिउ उम्मग्गि महादुलघि । सो घोरे वग्धे खज्जमाणु जरकूवइ पडिउ पधावमाणु। तहिं णयणचरणपसरेण मुक्कु फणिविच्छियकीडयसयविलुक्कु । 10 "णिग्गमणोवायरिपज्जियं हि येजें मेहम कित तासु सरीरु समिद्धकरणु होतउ विणिवारिउ झत्ति मरणु। संठविउ सच्चरमणीयमग्गि जिह पुणु वि पडइ णरु कूवदुम्गि । तिह रिसि यि परमजिणमग्गभछु । भणु तमतमपहि 'को णउ पइछ । णायसिरि वण्णलायण्णरहिय। दक्खालिय गुरुदालिद्दमहिय। तं पेच्छिवि मुणि संजमु धरेवि भाएं सहुं सुहझाणे मरेवि। उप्पण्णउ कयकंदप्पदप्पि । बलहविमाणि चउत्थकप्पि। अच्छिय सत्तोवहि जीवमाण तेत्थाउ मुएप्पिणु दह वि पाण। हउं जायउ सायरदत्तु तेत्यु तुहं रायकुमार कुमारु एत्थु। ता दिखंकिउ 'सुउ वीरराउ वारिउ पियरेहिं महाणुभाउ। 20 पुरवरि पइछु गुणगणविसालु सावज्जु भोज्जु इच्छइ ण बालु। (मुनि) मुक्त कामरति करता है, तो वह बिना किसी विकल्प के निन्दनीय है। हे सुन्दर ! सुनो किसी समय एक पथिक वन के भीतर सुख से जा रहा था। वह पत्तों, फूलों और फलों के रस से श्लाघ्य, महादुर्लघ्य खोटे मार्ग में पड़ गया। एक भयंकर बाघ के द्वारा खाया जाता हुआ और दौड़ता हुआ वह पुराने कुएँ में गिर पड़ा। वहाँ यह नेत्रों और चरणों के प्रसार से मुक्त हो गया। सैकड़ों साँपों, बिच्छुओं और कीड़ों ने उसे काट खाया। उसका शरीर निकलने के उपाय से रहित था। एक वैद्य ने उसे निकाला और दवाइयों के प्रयोग से उसके शरीर को पुष्ट कर दिया, उसकी होनेयाली मौत को टाल दिया और उसे सबके लिए रमणीय मार्ग पर स्थापित कर दिया। जिस प्रकार वह आदमी पुनः कुएँ के दुर्गम स्थान में गिरता है, उसी प्रकार परम जिनमार्ग से भ्रष्ट कौन-सा ऋषि तमतमःप्रभा नरक में नहीं जाता ? फिर उसने उसे (भवदेव मुनि को) अत्यन्त गरीबी से मण्डित एवं रंग-रूप से रहित मागश्री बतायी। उसे देखकर, वह मुनि संयम धारण कर और शुभ भाव के साथ शुभध्यान से मरकर, कामदेव के दर्प को धारण करनेवाले चौथे स्वर्ग के बलभद्र विमान में जन्मा। यहाँ सात सागर पर्यन्त जीवित रहकर, वहाँ से भी दसों प्राणों को छोड़कर मैं वहाँ सागरदत्त हुआ और तुम यहाँ राजकुमार हुए। दीक्षा के लिए कृतसंकल्प महानुभाव वीरराज पुत्र को माता-पिता ने मना कर दिया। गुणगण से विशाल यह नगर में आया। बालक सावध (जो प्राशुक नहीं है) भोजन नहीं खाता। (3) I. AP मुक्कामु रह। 2. A णिग्गय मणि याय। 3. AP 3 को। 4. A सउवीयराउ: P सुउ वीयराउ ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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