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________________ 386 महाकइपुष्फयंतविरयऊ महापुराणु [101.1.1 एकोत्तरसयमो संधि तहु णियड घम्म आयण्णिवि गुणवंतें। तउ लइयऊ तेण खेतदयावहुकंतें ॥ ध्रुवकं ॥ जायर मणपज्जयणाणवंतु भासंतु धम्मु महियलि भमंतु । एस्थायउ जइवरु जसविसाल भो णियकुलकमलायरमराल । इय मंतिवयणु णिसुणिवि कुमारु गउ मुणिहि 'पासि संसारसारु। घाँदेवि आण्णिवि परमधम्म पुणु पुच्छिउ तेण विमुक्कछम्मु। तुह दंसणि जायउ मज्झु णेहु पुलएण सव्यु कंटइउ देहु। किं कारणु पभणहि वीयराय सुरसिरमणिमउडणिहिट्ठपाय। तं णिसुणिवि पभणई' रिसि पवित्ति इह जंबुदीवि' इह भरहखेत्ति। सिरिवुलगामि जयलच्छिठाणु णरधइ' वि रहकूडाहिहाणु। रेवइघरिणिहि भयदत्तु पुत्तु भवदेउ अबरु तहु मुणिणिउत्तु। तहु जेहें सुष्ट्रियगुरुहि पासि तउ लइय णिव धम्माहिलासि । महि विहरिवि कालें दिव्यधामु आयउ पुणु सो णियजम्मगामु। 10 एक सौ पहली सन्धि शान्ति और दयारूपी वधू के स्वामी उस गुणवान ने उनके निकट धर्म सुनकर तप ग्रहण कर लिया। वह पनःपर्ययज्ञानी हो गये और धर्म का व्याख्यान करते हुए धरती पर विहार करनेवाले हैं। यश से विशाल और अपने कुलरूपी सरोवर के हंस हे कुमार ! वह यतिवर यहाँ आये हुए हैं"-मन्त्री के इन शब्दों को सुनकर कुमार मुनिवर के पास गया। संसार में श्रेष्ठ मुनि की वन्दना कर एवं परमधर्म को सुनकर, फिर उसने क्रोध से रहित उनसे पूछा कि आपके दर्शन से मुझे स्नेह उत्पन्न हो गया है। पुलक से समस्त शरीर रोमांचित है। देवों के शिरोमणियों से घर्षितचरण, हे वीतराग ! बताइए, क्या कारण है ?" यह सुनकर उन पवित्र मुनि ने कहा - "इस जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र के श्रीवृद्ध गाँव में विजयरूपी लक्ष्मी का घर राष्ट्रकूट नाम का राजा था। उसकी रेवती नाम की पत्नी से भगदत्त नाम का पुत्र हुआ। मुनि के द्वारा उक्त दूसरा भवदेव है। हे राजा श्रेणिक ! धर्म की अभिलाषा होने पर उसके बड़े भाई ने सुस्थित गुरु के पास दीक्षा ग्रहण कर ली। धरती पर विहार करते हुए वह समय के साथ दिव्यधाम, अपने जन्मगाँव में आये। उस गाँव में गृहस्वामी दुर्मर्षण था जो गुणों से महान् था। उसकी सुमित्रा नाम की प्रसिद्ध पत्नी थी। उसने अपनी वागश्री 11) | AP पासु। 2.A पसगा। : AP जंवृदीया भर | 4.AP RAP नइ जणियधम्मा'| 6. A निळ'।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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