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महाकइपुप्फयतविरपर महापुराणु जिह विडिउ घणु तिह घरु परियणु जाएसइ महु केरउं जोव्वणु। णिव्वेइउ संसारविराएं
गउ णदणवणु सहं णियताएं। घत्ता-णिउ णिदिवि वंदिवि दुरियहरु तित्थु अमियसायरजिणु ।
णियवित्तिइ दित्तिइ परियरिउ पुष्फदंतभारहतणु 10॥
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इप महापुराणे तिसद्विमहापुरिसगुणालंकारे महाभवभरहाणमण्णिए महाकइपुष्फयंतविरइए महाकव्ये जंबूसामिदिक्खयण्णणं
णाम 'परिच्छेयसयं समत्तं ॥10॥
घर, परिजन और मेरा यौवन चला जाएगा। इस प्रकार वह संसार से विरक्त अपने पिता के साथ विरक्त होकर नन्दनवन चला गया।
धत्ता--अपनी निम्मा कर, घोर पापों का हरण करनेवाले अमृतसागर जिनवर की वन्दना कर, सूर्य और चन्द्रमा की कान्ति से आच्छादित वह अपनी वृत्तियों और कान्तियों से परिवेष्ठित हो गया।
इस प्रकार प्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभव्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का जम्बूस्वामी-दीक्षा-वर्णन
नाम का सोचौ परिच्छेद समाप्त हुआ।
3. A तेथु; P तत्यु। 4. A जंबुसामिदीक्षावर्णन 3. A सयमो परिच्छेओ सम्पत्ती।