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महाकइपुप्फयंतविरय
महापुराणु
[100.7.12
विज्जूचोर समउ सुतेयउ चोरहं पंचसएहिं समेयउ। णिच्चाराहियवीरजिणिंदहु पासि सुधम्महु धम्माणंदहु। घत्ता-तउ लेसइ होसइ परजई' होएप्पिणु सुयकेवलि।
हयकम्मि सुधम्मि सुणिव्वुयइ जिणपयविरइयपंजलि ॥7॥
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पत्तइ बारहमइ संवच्छरि पंचमु णाणु एहु पावेसइ तेण समउं महियलि' विहरेसइ वरिसई धम्मु सबभब्योहह' अंतिमकेवलि उप्पज्जेसड़ . इच मणि माणवि णच्चिउ सुरवरु पुच्छइ सेणिउ सुरु किं णच्चइ आसि कालि ससहरकरणिम्मलि धम्मइठ्ठ वणि गुणदेवीवइ वसणवसंगउ दुक्खें खंडिउ
चित्तपरिट्विइ वियलियमच्छरि। भवु णामेण महारिसि होसई। दहगुणियई चत्तारि कहेसइ। विद्धसियबहुमिच्छामोहहं। महु पहुवंसहु उपणइ होसइ। परमाणदें दिसिपसरियकरु । बुधु केउ ता गणहरु सुच्चइ। जंबूसामिसि वणिवरकुलि। अरुहदासु तहु सुर णिरु दुम्मइ । चिंतइ हउं णियदप्में दंडिउ।
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और मोह से परित्यक्त राजपुत्र ब्राह्मण, वणिक् एवं पाँच सौ चोरों के साथ विद्युत्-चोर वीर जिनेन्द्र की निरन्तर आराधना करनेवाले धर्मानन्द सुधर्मा आचार्य के पास, ____घत्ता-तप ग्रहण करेगा और श्रुतकेवली परम तपस्वी होकर सुधर्माचार्य के कर्मों का नाश कर निर्वाण प्राप्त कर लेने पर जिनचरणों में अंजली बाँधनेवाला यह,
(8) बारहवौं वर्ष प्राप्त होने पर, ईर्ष्या से रहित चित्त के होने पर पाँचवाँ ज्ञान (केवलज्ञान) प्राप्त करेगा और “भव' नाम का महामुनि होगा। उनके (जम्बूस्वामी के साथ धरती पर बिहार करेगा। चालीस वर्षों तक, अत्यन्त मिथ्या मोह का नाश करनेवाले भव्यों के समूह के लिए धर्म का कथन करेगा। वह अन्तिम श्रुत केवली होगा। मेरे और धीरस्वामी के वंश की उससे उन्नति होगी।' अपने मन में यह मानकर वह सुरवर दिशाओं में अपने हाथ फैलाकर परम आनन्द से नाचने लगा। श्रेणिक पूछता है-यह देव क्यों नाच रहा है ? यह आपका बन्धु कैसे ? गणधर सूचित करते हैं-चन्द्रमा की किरणों के समान निर्मल, जम्बूस्वामी के वंश के श्रेष्टी-कुल में गुणदेवी का पति धर्मप्रिय नामक सेठ था। उसका अर्हद्दास नाम का अत्यन्त खोटी बुद्धिवाला पुत्र था। व्यसनों के अधीन होकर वह दुःख से खण्डित हो गया। वह अपने मन में सोचता है कि मैं अपने ही दर्प के कारण दण्डित हुआ हूँ। मुझ मूर्ख ने पिता की एक भी सीख नहीं मानी। इस समय
fi. A विज्जयोरें। 7. AP परमजद्द ।
(8) 1. पहियल। 2. AP सब्बु । 3. AP केप।