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________________ 100.7.1]] महाकइपुष्फयंतविरयउ महापुराणु 1381 किमिखज्जंतु दुक्खु पार्वप्पिणु गउ सो णरयहु पाण' मुएप्पिणु। जिह सो तिह जणु भोयासत्तर मरइ बप्प णारियणहु रत्तउ। धत्ता-णियइच्छड़ पच्छइ भीरुयह जीवहु वेयसमग्गउ । ___णासंतहु जंतहु भवगहणि मच्चुणाम करि लग्गउ ॥6॥ 15 णिवडिउ जम्मकूइ विहिविहियइ लंबमाणु परमाउसुवेल्लिहि । कालें कसणसिएहिं विहिण्णी णिवडिउ णरयभीमविसहरमुहि इय आयण्णिवि तहु आहासिउं जणिइ 'तक्करेण वरकण्णहिं ता' अंबरि उग्गमिउ दिवायरु कूणिण गएं गणपति सिविवहि रयणकिरणविष्फुरियहि णाणासुरतरुकुसुमपसत्थइ बंभणवणियहिं पत्थिवपुत्तहिं कुलतरुमूलजालसंपिहियइ। पंचिंदियमहुबिंदुसुहेल्लिहि। सा दियहुंदुरेहि- विच्छिण्णी। पंचपयारघोरदावियदुहि। सव्वहिं धम्मि सहियर णिवेसिउं। मरगयमणहरकंचणवण्णहिं। जंबूदेउ पराइउ सायरु। णितखवणाहिसेउ किउ सामिहि । आरूढउ 'वरमंगलभरियहि । विउलि विउलधरणीहरमत्थइ। पुत्तकलत्तमोहपरिचत्तहिं। 10 कीड़ों से खाया गया, दुःख उठाकर वह प्राण छोड़कर नरक में गया। जिस प्रकार वह मरा, उसी प्रकार बेचारे दूसरे भी नारीजन में आसक्त होकर मरते हैं। यत्ता-भीरु जीव के पीछे, वेग से परिपूर्ण मृत्यु नाम का महागज देखता है और संसाररूपी वन में नष्ट होते हुए जीव के पीछे लग जाता है। वह विधाता के द्वारा रचित कुलतरुमूल और जाल से आच्छादित जन्मरूपी कुए में गिरता है। पाँचों इन्द्रियरूपी मधुबिन्दुओं से सुखद परम आयुरूपी लता से लटका हुआ है। काल के द्वारा, काले और सफेद रात-दिनरूपी चूहों के द्वारा खण्डित वह आयुरूपी लता नष्ट हो जाती है। जीव पाँच प्रकार के घोर दुःखों को दिखानेवाले, नरकों के भीम विषधर मुखों में गिरता है।" उसका यह कहा सुनकर माता, विद्युन्माली चोर और मरकत के समान सुन्दर एवं स्वर्णवर्ण उन श्रेष्ठ कन्याओं (इस प्रकार सब) ने धर्म में अपना हृदय लगा लिया। इसी बीच आकाश में सूर्योदय हो गया। जम्बूदेव भी सादर पहुँच गये। राजा कुणिक ने अपने गजगामी स्वामी का दीक्षाभिषेक किया। उत्तम मंगलों से युक्त रत्नकिरणों से विस्फुरित शिविका पर वह आरूढ़ हुए। नाना प्रकार के कल्पवृक्ष के फूलों से प्रशस्त एवं विशाल पर्वतों में श्रेष्ठ विपुलाचल पर्वत पर, पुत्र-कलत्र 8. P मउ। 9. AP पाण। 10. A तेय, (7) 1. A पंचेंद्रियः । 2. AP दियदिरेहि। 3. AP ताफरेटिं। 4. AP तावंतरि। 5. AP बहुमंगल ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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