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________________ 36 ] महाकइपुष्फयतविरयज महापुराणु [82.18.13 तं णिसुणिवि तेण वि तवचरणु किउं कामकसायरायहरणु। उप्पण्णु सुक्कि णिरसियविसउ सोलहसायरबद्धाउसउ। कालें जंतें तेत्थहु पडिउ णररू णं वम्महु घडिउ। णं तरुणिणयणमणरमणहरु णं गहुँ कागदण्डविहारम् । णं कामबाणु णं पेम्मरसु णं पुरिसरूविं थिउ मयणजसु। वसुएवं एहु सूहबु सुहडु सुउ तुह जायउ हयहत्यिहडु' । तो' अधकविढेि वंसधउ णियवइ णिहियउ समुद्दविजउ । सुपइ?' भडारउ गुरु भणिवि मोहंधिवमूलई णिल्लुणिवि। उवसग्ग परीसह बहु सहिवि तवु करिवि घोरु दुरियई महिवि । घत्ता-भरहरायदिहिगारउ अंधकविठ्ठि भडारउ । गउ मोक्खहु मुकिदिउ "पुष्पयंतसुरवंदिउ ॥18॥ इय महापुराणे तिसटिमहापुरिसगुणालंकारे महाकापुप्फपंतविरइए महाभबभरहाणुमपिणए महाकबे बसुएबउप्पत्ती' अधकविधिणिव्याणगमणं णाम "टुयासीमो परिच्छेउ समत्तो ॥820 और कषायों का अपहरण करनेवाला तपश्चरण किया। विषयों का परित्याग करनेवाला वह सोलह सागर की आयु बाँधकर शुक्र स्वर्ग में उत्पन्न हुआ। समय बीतने पर वहाँ से च्युत होकर मनुष्यरूप में उत्पन्न हुआ। मानो कामदेव ने उसका निर्माण किया हो, मानो तरुणियों के नेत्रों और मन के लिए रमण करने का घर हो, मानो दुर्मद विरहज्वर करनेवाला शनि हो, मानो कामदेव हो, मानो प्रेमरस हो, मानो पुरुष के रूप में कामदेव का यश हो। यह सुभग और सुभट तथा गजघटाओं को आहत करनेवाला तुम्हारा पुत्र हुआ है। तब अन्धकवृष्णि ने अपने कुल के ध्वज समुद्रविजय को अपने पद पर स्थापित कर दिया। आदरणीय । अपना गुरु मानकर, मोहरूपी वृक्ष की जड़ें काटकर बहुत से उपसर्ग और परीषह सहन कर, तपकर, घोर पापों को नष्ट कर; ___घत्ता-भरतक्षेत्र के राजाओं को सन्तोष देनेवाले, आदरणीय नक्षत्रों और देवों द्वारा वन्दनीय मुक्तेन्द्रिय अन्धकवृष्णि मोक्ष चले गये। इस प्रकार सठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वारा विरचित एवं महाभष्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का वसुदेव-उत्पत्ति एवं अन्धकवृष्णि-निर्वाण-गमन नाम का बयासीवा परिच्छेद समाप्त हुआ। पुष्कर्यत: 5 पुष्पयंत । 9. AP 2. A गारिहु । 3. AP कयदुम्महु। 4.A"हत्यिपहु। 5. A ता। 6. ABP पियपई। 7. B सुपडल। 8. P.पुष्पयंतुः समुहविजयादिश्यत्ती। 10. AS दुयासीतिमो; P दुयासीमी।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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