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82.18.2] महाकइपुप्फयंतविरयउ महापुराणु
[ 35 ( 17 ) तइयम्मि जम्मि आलद्धदिहीं। वसुदेउ नाम राप हॉवहाँ।। जो तुम्हह जणणु सीरिहरिहिं भुयबलतोलियपडिबलकरिहिं। तहु तणुछाहुल्लिय ओयरिय ता बे वि तहिं जि रिसि संचरिच । जहिं सो अपाणउ किर घिवइ अणुकंपइ संखु साहु चबइ। उब्वेइउ' दीसहि काई णिरु कि चिंतहिं णिसुणहि किं बहिरु। तं णिसुणियि पणइणिदुक्खियउ । पहिलवइ कुकम्मुवलक्खियउ' । महुं मामहु 'धूय जेत्तियउ लोयहं पविइगण' तेत्तियउ। हउँ दूह' णिद्धणु बलरहिउ कि जीवमि परणिंदइ गहिउ । णिद्दइयु णिरुज्जमु किं करमि इह णिवडिवि वर लणु संघरमि ।
घत्ता-मुणि पभणइ किं चिंतहि अप्पउं महिहरि घत्तहि । ___भो जिणवरतवु किज्जइ दुरि दिसाबलि दिज्जइ ||17 ||
( 18 ) लब्भइ सयलु वि हियइच्छियउं पद तं मुणिवरहिं दुगुछियउं । मग्गिज्जइ णिक्कलु परमसु९ जहिं' कहिं मि ण दीसइ देहदुई ।
( 17 ) तीसरे जन्म में, भाग्य को पानेवाला वसुदेव नाम का राजा होगा जो अपनी भुजाओं से शत्रुगजों को तोलनेवाला तुम दोनों बलभद्र और नारायण का पिता होगा 1 जहाँ से उसकी छाया आ रही थी, वे दोनों महामुनि उस स्थान के लिए चल दिये। जहाँ वह अपने को गिराना चाहता था, वहाँ करुणा से द्रवित होकर शंख मुनि बोले- "तुम अत्यन्त उद्विग्न दिखाई क्यों देते हो ? क्या सोच रहे हो, सुनो, क्या बहरे हो !" यह सुनकर प्रणयिनी के दुःख से दुःखी और कुकर्मों से उपलक्षित वह कहता है-"मेरे मामा की जितनी कन्याएँ थीं, उनसे दूसरों ने विवाह कर लिया। मैं निर्धन, बलरहित और असुन्दर हूँ, दूसरों की निन्दा से गृहीत क्या जिऊँ ? बिना देव और उद्यम के क्या करूँगा इसलिए यहाँ से गिरकर, अच्छा है अपने शरीर को नष्ट कर लूँ।" ___यत्ता-मुनि कहते हैं-तुम क्या सोचते रहते हो और स्वयं को पहाड़ से ढकेलते हो ? अरे, जिनवर का तप करना चाहिए जिससे पापों की दिशाबलि दे सको।
(18) यद्यपि इससे सब कुछ पाया जा सकता है, परन्तु मुनिवरों द्वारा इसकी भी निन्दा की जाती है। केवल निष्फल परम सुख माँगना चाहिए, जिसमें कहीं भी देह-दुःख दिखाई नहीं देता। यह सुनकर उसने भी काम
(17)1. आलद्धि। 2.5 तुमहुं। 9. 5 उपरिय। 4. A उजेय । .A टीसह 5 दीसह। 5. B णिसुणइ। 7. कुकम्मबलविखयउ । 8. B यूबउ। 9. B बडिवपण: Pपडियण्ण। 10. R दीहः । दूहड़। 1. Bणिज्जउ P णिइउ । 12. S संघरमि। 15. B वित्तहिद घेतहि।
(18) 1.5 जें।