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________________ 341 [82.15.9 महाकहपुष्फयंतविरपट महापुराणु घत्ता-पिबदसण सहुं जेदुइ किस 'हूई तवणिइ ॥ पुत्ति कोंति सा जाणहि अवर मद्दि अहिणाणहि ॥15॥ 10 पहु पुच्छइ वसुदेवायरणु जिणु अक्खइ णाणि जित्तकरणु। बहुगोहणसेवियणिविडबडु कुरुदेसि पलासगाउं पयडु। तहे सोमसम्मु णामेण दिउ हुउ णदि तासु सुर पाणपिउ। तें देवसम्मु णियमाउलउ सेविउ विवाहकरणाउलउ । सत्त' वि धीयउ दिग्णउ परह घणकणगुणवंतह दियवरह। णदि दिठ्ठउ णच्चंतु णडु भडसंकडि णिवडिय विबलु बडु। अण्णाणिउ बसु 'हवंतु हिरिहि जणपहसणि गउ लज्जिवि गिरिहि। गुरुसिहरारूढउ तसियमणु आवेवि' जाइ |उ घिवइ तणु। तलि आसीणा अच्चंतगुणि तहि संखणाम णिण्णाम मुणि। परछायामगु णियच्छियर दुमसेणु तेहिं आउच्छियउ। गुरु अक्खहि" कायछाय करहु कहु तणिय एह आइय घरहु। पत्ता-ता णियणाणु पयासइ ताहं भडारउ भासइ । होतउ सच्चउं दीसई जो तुम्हहं पिउ होसइ ॥16॥ घत्ता--ज्येष्ठा के साथ जो प्रियदर्शना तप की निष्ठा में अत्यन्त दुबली-पतली हो गयी थी, उसे पुत्री कुन्ती जानो और दूसरी को माद्री पहिचानो। (16) तब राजा वसुदेव का पूर्व चरित पूछता है। इन्द्रियों के विजेता केवलीजिन कहते हैं-कुरुक्षेत्र में बहुत-से गोधन की सेवा में अत्यन्त चतुर पलास नाम का प्रसिद्ध गाँव था। उसमें सोमशर्मा नाम का ब्राह्मण था। उसका नन्दी नाम का प्राणप्रिय पुत्र था। विवाह करने के लिए आकुल उसने अपने मामा देवशर्मा की बहुत सेवा की। परन्तु मामा ने अपनी सातों कन्याएं धन-अन्न और गुणों से युक्त दूसरे श्रेष्ठ ब्राह्मणों को दे दी। नन्दी ने (विवाह में) नट को नृत्य करते हुए देखा। वह बटुक योद्धाओं की उस भीड़ में दुर्बल होकर गिर पड़ा। वह अज्ञानी लज्जा के वशीभूत होकर लोगों के उपहास से घबराकर जंगल में चला गया। त्रस्तमन वह पर्वत की एक बड़ी चोटी पर चढ़ गया, उस पर आता और जाता, परन्तु अपना शरीर नहीं गिराता (पर्वत से नहीं कूदता)। नीचे तलभाग पर अत्यन्त गुणवान् नि म और शंख नाम के मुनि बैठे हुए थे। उन्होंने दूसरे का छायामार्ग देखा और उन्होंने गुरु द्रुमसेन से पूछा-गुरु जी बताइए यह किस मनुष्य के शरीर की छाया पहाड़ से धरती पर आ रही है ? ___घता-तब उनसे आदरणीय गुरु अपना ज्ञान प्रकाशित करते हुए कहते हैं, जो होनहार है वह सच है, वह तुम्हारा पिता होगा। दि। 5. A बलु। (16) I.A विवियइतङ्क, णिवडवडो; "थिइवडे। 2. "गाम। 3.5 सोम्मसम्मु 1 4. B सत्त वि जि धौउ 15.गर्दै भतु । M. Bपरिमणि परसाणें। 9. PS आवेड़। 10. B णु जि तहिं। 11, 8 अक्तह। 12.5 कायदाह' । 7
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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