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________________ 376 ] महाकइपुष्फयंतबिरयड महापुराणु | 100.2.7 पण नादिर में पोसह . देव चरमकेवलि को होसइ। भारहवरिसि गणेसरु भासइ एहु सु विजुमालि सुरु दीसड़। भूसिउ अच्छराहिं गुणवंतहिं विज्जुवेयविज्जुलियाकंतहिं। पिक्क सालिछेत्तु 'जलिओ सिहि । मयमत्तउ करिटु बहुमयणिहि। देवदिण्णजंबूहलदायइ इय सिविणयदंसणि संजायइ। अरुहयासवणियहु' घणथणियहि । सुरवरु जिणदासिहि सेट्ठिणियहि। सत्तमदिवहि गब्भि थएसइ जंबूसुरहु पुज्ज पावेसइ। जंबूसामि णाम इहु होसइ तक्कालइ णिव्वुइ जाएसइ। वडमाणु पावापुरसरवणि णिद्धणीलणवचउरंगुलतणि' । तइयतुं जाएसइ णिव्वाणहु अचलहु केवलणाणपहाणहु। घत्ता-हडं केवलु अइणिम्मलु पाविवि समउं सुहम्में। एउं जि पुरु तोसियसुरु आवेसमि हयकम्में ॥2॥ सुणि सेणिय कूणिउ तुह' णंदणु जंवूसामि वि तहिं आवेसइ संबोहेसमि' सुयणाणंदणु। अरुहदिक्ख भत्तिइ मग्गेसइ। देवेन्द्र ने उनकी पूजा की।" मगधनरेश राजा श्रेणिक फिर उनसे पूछता है-'हे देव ! भारतवर्ष में अन्तिम केवली कौन होगा ?" गौतम गणधर कहते हैं- "यह जो विद्युन्माली देव दिखाई देता है जो गुणवती विधुदुवेगा, विद्युल्लता, विद्युत्कान्ता आदि अप्सराओं से भूषित है। पका हुआ धान्य क्षेत्र, प्रज्वलित आग, मतवाला प्रचुरमद का निधि गजराज और जिसमें देवों द्वारा दिये गये जम्बूफल हैं, ऐसे स्वप्नदर्शन' के होने पर अहंदूदास सेठ की सघन स्तनोंवाली सेठानी जिनदासी के गर्भ में, आज से सात दिन बाद यह सुरवर स्थित होगा और जम्बूकुमार देवों द्वारा पूजा जाएगा।" इसका नाम जम्बूस्वामी होगा और महावीर के काल में मोक्ष प्राप्त करेगा। स्निग्ध, नीले, और नौ-चार अंगुल के विस्तारवाले पावापुर के सरोवरवन में जब महावीर केवलज्ञान-प्रधान अचल निर्वाण को प्राप्त होंगे, (तब) पत्ता-सुधर्मा के साथ अतिनिर्मल केवलज्ञान प्राप्त कर कर्मों का नाश करनेवाला मैं देवों को सन्तुष्ट करनेवाले इस नगर में आऊँगा। हे श्रेणिक सुनो ! स्वजनों को आनन्द देनेवाले तुम्हारे पुत्र कुणिक (चेलना के पुत्र) को सम्बोधित करूँगा। 1. AP जि। 5. AP जलियउ । G. AP असहदास"17. A पहु। R. A पठमाणुफ 9. Pomits गया। (3)1. A णियणंदणु। 2. A संबोहेसह । S. AP मंडइ। 4. AP सलक्खण। • यस्तुतः प्रियदर्शना, सुदर्शना, विपुढेगा और प्रभावेगा। ये वार देवियाँ थीं। + हाथी, सरोपर, चाबलों का लेत. ऊपर शिखावाली घूमरहित अग्नि से पांचों शुभ स्वप्न हैं।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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