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100.2.6]
महाकपुष्यंतथिरय महापुराणु
तहिं तिहिं पुरसहिं सो अवलोइड एवं सामुद्दे पुहईस अवरेक्कें बोल्लिउ भो जेहउं डिंभु" एण परभवि अवयारिउ पावयम्मु इहु भिक्खु ण चुच्चइ
लक्खणधरु भणेवि पोमाइउ" । किं णउ जायउ एहु जईसरु | पई वृत्तउ बहुमहिवइ" तेहउं । मंतिहिं हित्तु रज्जु तं मारिउ छ । एयहु केरी तत्तिविमुच्चइ ।
घत्ता - आयणिवि तं मणिवि अवि भुंजंतु णियत्तउ । परमेट्टिहि सुहदिडिहि समवसरण संपत्तउ || 1 ||
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सेणिय अइरोसें पज्जालिउ परमाणु दुक्कम्मु णिरोहहि तं णिसुणिवि 'जाइवि अणुराएं तेण वि तं नियचित्ति णिहित्तउं उप्पाइउं केवलु सलामलु तं अवलोइवि धम्मुच्छाहें
पद्मं रउद्दझाणत्थु णिहालिउ । रिसि जाइवि तुहुं हुं संबोहहि । धम्मवयणु तहु भासिउं राएं। अट्टरउद्दझाणु परिचत्तउं । इसि इसिणाहु पहूयउ णिम्मलु । सेणिउ स पुजिउ सुरणाहें ।
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11. A पोमहत्व | 12. AP एहु महिवह 13. A डिंभएण धरभरि अवचारिवि 14 A हियउ 15 मारिवि । ( 2 ) 1 A जायअणुराएं। 2 A तसु। 3 A इसि इष्हि णाणु ।
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तुम्हारे नगर में आज निरवद्य भोजन के लिए उन्होंने प्रवेश किया। वहाँ तीन व्यक्तियों ने उन्हें देखा और "वे शुभ लक्षणों से युक्त हैं यह कहकर प्रशंसा की। उनमें से एक कहा कि सामुद्रिक शास्त्र के अनुसार यह पृथ्वीश्वर हैं। फिर योगीश्वर क्यों हो गये ? एक और ने कहा- "तुमने जैसा कहा है, वह उसी तरह प्रचुर धरती के स्वामी हैं, परन्तु दूसरे कारण ( राज्य कारण ) से पुत्र को अवतरित कर दिया। मन्त्रियों ने राज्य का अपहरण कर पुत्र को मार डाला। यह पापकर्मा है, इसे भिक्षु नहीं कहा जा सकता, इसका सन्तोष दूर करना चाहिए ?
छत्ता - यह सुनकर क्रोध कर भोजन नहीं करते हुए (ये) लौट गये और शुभदृष्टि परमेष्ठि महावीर के समवसरण में आये।
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हे श्रेणिक ! अत्यन्त क्रोध से प्रज्वलित इन्हें तुमने रौद्र में स्थित देखा है। इनके फैलते हुए दुष्कर्म को तुम रोको मुनि को जाकर तुम शीघ्र समझाओ" यह सुनकर और प्रेम से जाकर राजा ने उनसे धर्मवचन कहे। उन्होंने भी उन वचनों को अपने मन में धारण कर अत्यन्त आर्तध्यान का त्याग कर दिया । सम्पूर्ण पवित्र केवलज्ञान उन्हें उत्पन्न हो गया और ऋषि पवित्र ऋषिनाथ हो गये। यह देखकर हे श्रेणिक ! स्वयं