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________________ 3 . नहः । इसरियड महापुराणु [100.1.7 सयमो संधि आहिँडिवि मंडिबि सयल महि धम्में रिसि परमेसरु। ससिरिहि' विउन्नइरिहि आइयउ कालें वीरजिणेसरु । ध्रुवकं ।। सेणिउ गउ पुणु वंदणहत्तिइ सुरतरुतलि सिलवीदि णिविट्ठउ झाणारूढउ भिउडियलोयणु पुच्छिउ गोत्तमु सिवरामाणणु भणइ गणेसरु अंगइ मंडलि होतउ एहु साहु धणरिद्धउ वीरहु पासि धम्मु आयण्णिवि णियतणयह कुलगयणससंकहु अप्पुणु तबु लइकउं परमत्थे । दहविहधम्मरुईइ पयासिउ" तुम्हारइ पुरवरि हिरवज्जें समवसरणु संजायतें' भत्तिइ। धम्मरुइ त्ति णाम रिसि दिदउ । राएं तेण सणाणविलोयणु। कि दीसइ भो' मुणि भीमाणणु । चंपापुरवरि ण वि आहंडलि। राउ सेयवाहणु सुपसिद्धम्। तणसमाणु' मेइणियलु मण्णिवि । दिष्णउ विमलवाहणामकहु। वड्डमाणपयमजलियहत्थें। धम्मरुइ त्ति मुणिहिं उब्भासिउ। अज्जु पइट्ठउ भोयणकज्जें। 10 सौवीं सन्धि समस्त धरती का परिभ्रमण कर और उसे धर्म से अलंकृत कर, परम ऋषि वीर जिनेश्वर, समय के साथ शिखरों से युक्त विपुलगिरि पर्वत पर आये। राजा श्रेणिक फिर से वन्दना भक्ति के लिए गया। भक्ति के साथ समवसरण को देखते हुए अशोक वृक्ष के नीचे शिलापीठ पर बैठे हुए उसने ध्यान में लीन, जुड़ी हुई भौंहोंवाले धर्मरुचि नाम के मुनि को देखा। उस राजा ने ज्ञाननेवाले और मुक्तिरूपी रमा को प्राप्त करनेवाले गौतम मुनि से पूछा--"ये मुनि भीषण मुखवाले क्यों दिखाई देते हैं ?" गौतम गणधर कहते हैं-"अंगदेश की चम्पानगरी के समान दूसरी नगरी इस पृथ्वीमण्डल पर नहीं है। यह मुनि वहाँ के धनसम्पन्न श्वेतवाहन नाम के प्रसिद्ध राजा थे। भगवान महावीर के पास धर्म का श्रवण कर, पृथ्वी को तिनके के समान समझकर, कुलरूपी आकाश के चन्द्रमा विमलवाहन नाम के अपने पुत्र को राज्य देकर, वर्धमान भगवान के चरणों में हाथ जोड़े हुए परमार्थ भाव से स्वयं इन्होंने सप ग्रहण कर लिया। मुनियों ने दसधर्म की कान्ति से प्रकाशित उन्हें धर्मरुचि नाम से उद्घोषित किया। (1) I. A सिहरिहि। 2. वि विउलएरिहे। 3. AP पुणु गठ। 4. AP जोते। 5. AP सुणाण" | 6. AP सिसिरिमाणणु। 7.AP सो। *.A रिणि । 9. AP तिण" | 10. A पसंसिर ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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