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पहाकइपुण्फवंतविरयड महापुराणु घत्ता-जिह भरहु अजिंदहु रिसहजिणिंदहु पणविउ भडपंचाणणु ।
तिह अइगंभीरहु सेणिउ वीरहु पुष्फदंतधवलाणणु ॥20॥
इप महापुराणे तिसधिमहपुरिसगुणालंकारे महाभधभरहाणुमण्णिए महाकापुष्फयंतयिरइए महाकब्बे जीवंधरभवायण्णण'
णाम णवणउदिमो परिच्छेओ समत्ती ॥५॥
घत्ता-जिस प्रकार भटश्रेष्ठ भरत ऋषभ जिनेन्द्र के लिए प्रणत था, उसी प्रकार पुष्पदन्त के समान धवल मुखवाला राजा श्रेणिक अत्यन्त गम्भीर महावीर स्वामी के लिए है।
इस प्रकार त्रेसठ महापुरुषों के गुणालंकारों से युक्त इस महापुराण में महाकवि पुष्पदन्त द्वास विरचित एवं महाभष्य भरत द्वारा अनुमत महाकाव्य का जीवन्धर-भव-वर्णन
नाम का निन्यानवेयाँ परिच्छेद समाप्त हुआ।
8. A भववष्णणं।