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________________ 100.3.16] [377 महाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु सयणहिं सो णिज्जेसइ मड्डइ णियपुरि सतभूमिथियमंडइ। तहु विवाहु तहिं पारंभेव्बउ तेण वि णियमणि अवहेरिव्बट। सायरदत्ततणय पोमावइ अवर सुलक्खण' सुरगयवरगइ। पोमसिरि त्ति कणयसिरि सुंदर विणयसिरि ति अवर वर धणसिरि । भवणमज्झि माणिक्कपईवइ रयणचुण्णरंगावलिभावइ। एयहिं "सहुं तहिं अच्छइ मणहरु उपणाविय' इय णवकंकणकरु। वरु" वहयह करयल करि ढोयइ जणणि तास पच्छण्ण पलोयइ। तहिं अवसरि सुरम्मदेसंतरि विज्जुरायसुउ पोयणपुरवरि। विज्जुप्पहु णामें सुहडग्गिणि कुद्धउ सो अरिगिरिसोदामणि। केण वि कारणेण णं दिग्गउ णियपुरु मेल्लिवि सहसा णिग्गउ । असणु कवाडउग्याडणु सिक्खिवि लोयबुद्धिणिद्धाडणु। विज्जुचोरु णियणा" कहेप्पिणु पंचसायई सहायहं लेप्पिणु। घत्ता-बलवंतहि मंतहिं तं "तहिं गाविउ ढुक्कउ तक्करु। अंधारई घोरइ पसरियइ रयणिहि दूसियभक्खरु ॥3॥ 15 उस अवसर पर जम्बूस्वामी आएगा और भक्तिभाव से अरहन्त दीक्षा माँगेगा। स्वजनों के द्वारा वह बलपूर्वक ले जाया जाएगा, और उसके अपने नगर में सातभूमियोंवाले मण्डप में उसका विवाह प्रारम्भ किया जाएगा। वह भी अपने मन में इसकी उपेक्षा करेगा। सागरदत्त और पद्मावती की सुलक्षणोंवाली ऐरावत गज के समान गतिवाली पद्मश्री, कनकश्री, सुन्दरी, विनयश्री तथा एक और धनश्री ये सुन्दर पुत्रियाँ होंगी। रत्नचूर्ण की रंगोली से सम्पन्न तथा माणिक्यों से आलोकित भवन में बह सुन्दर इनके साथ बैठा होगा; वर नवकंकणों से युक्त हाथ उठाएगा और वधुओं के करतल में हाथ देगा। उसकी माँ छिपकर देखेगी। उसी अवसर पर, सुरम्यदेश के पोदनपुर नगर के विद्युद्राज का विद्युप्रभ नामक सुभटों में अग्रणी पुत्र पहाड़ी बिजली के समान किसी कारण से क्रुद्ध हो गया। दिग्गज के समान वह सहसा अपना घर छोड़कर नगर से बाहर निकल पड़ा। अदर्शन (छिप जाना, दिखाई नहीं देना), किवाड़ों को खोल लेना, लोगों की बुद्धि का उच्चाटन कर देना, आदि बातें सीखकर अपना नाम विद्युत्चोर बताकर, अपने पाँच सौ सहायक लेकर, पत्ता-वहाँ बलवान मन्त्रियों से छिपकर तथा सूर्य को दूषित करनेवाला वह रात्रि में सघन अन्धकार फैलने पर वहाँ पहुँचा। 5. A तह घण 1 6. AP सहु अछसइ मणहरू। 7. AP उपणाविर इय। 8. A वरवहुवह। 9. AP करयलि करु। 10. APणियणामु । II. AP तहि पि। 12. A गोविउ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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