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________________ 99.18.31 पहाकइपुष्फयतविरयड महापुराणु [ 369 20 25 मुउ संभूयउ सहसारसग्गि अट्ठारहसायरभुत्तभोग्गि। त्याउ एय आज सि घर सिरिविजयादेविहि पुरिसपवर । जो मारिउ तुह भिच्चेण हंसु संसारि भमिवि सो विमलवंसु । संजायउ कटुंगारमंति तुह जणणु णिहउ तें चंदकति । पाइलपिल्लवहु महंतसोउ जं सोलहवासरकयविओउ। सोलह वरिसाइं ण जोइओ सि तं तुहुँ' बुधुहं विच्छोइओ सि। ता राएं विज्जाहरु पवुत्तु तुहं मज्झु बप्प कल्लाणमित्तु । इय भासिवि जियरविमंडलेहि पुज्जिउ मणिकंचणकुंडलेहि। कडिसुत्तमउडहाराइएहिं माणिक्कमऊहविराइएहि । पट्ठविउ गयणगइ पत्थिवेण हेमाहणयरि भुजियसिवेण। कउ वासु जाम परियलइ कालु ता' अण्णु जि होइ कहतरालु। घत्ता-पुच्छिय महुराइहिं सयलहिं भाइहिं कहिं सो केसरिकंधरु। गंदड्दु णिसुंदरु सुहलक्खणधरु कहिं कुमारु जीवंधरु ॥17॥ (18) भणु भणु सामिणि गंधव्वदत्ति णवकयलीकंदलसरिसगत्ति। सा भासइ सुयण मणोज्जदेसि हेमाहणयरि मणहरपवेसि। णिवसति संत' दोण्णि वि कुमार कामावयार संसारसार । समान तेजस्वी जयरथ ने तपश्चरण ग्रहण कर लिया। मरकर वह सहस्रार स्वर्ग में उत्पन्न हुआ और अठारह सागर पर्यन्त सुखों को भोग कर, वहाँ से आकर, हे पुरुषश्रेष्ठ ! तुम श्रीमती विजयादेवी से उत्पन्न हुए हो। तुम्हारे भृत्य ने जिस हंस को मारा था, वह संसार में परिभ्रमण करता हुआ विमलवंश का काष्ठांगार मन्त्री हुआ। हे चन्द्रकान्तिवाले ! उसने तुम्हारे पिता का वध किया। तुमने सोलह दिन के वियोग का जो भारी शोक हंस के शिशु को दिया, उसी से सोलह वर्षों तक तुम भी नहीं देखे गये, और तुम भी अपने भाइयों से वियुक्त रहे।" यह सुनकर राजा जीवन्धर ने विद्याधर से कहा- "हे सुभट ! तुम मेरे कल्याण मित्र हो।" यह कहकर उसने सूर्यमण्डल को पराजित करनेवाले मणिस्वर्ण कुण्डलों और माणिक्य की किरणों से विराजित कटिसूत्र तथा मुकुटहारों से उसका सत्कार किया। राजा ने विद्याधर को विदा दी। सुख का भोग करनेवाले उसने हेमाभनगर में निवास किया, तो एक और कथान्तर घटित हो गया। ___घत्ता-मधुर, बकुल आदि भाइयों ने पूछा कि सिंह के समान कन्धोंवाला नन्दाढ्य और मनुष्यों में सुन्दर तथा शुभ लक्षणों को धारण करनेवाला कुमार जीवन्धर दोनों कहाँ गये ? (18) हे नवकदली के सार के समान देहवाली स्वामिनी गन्धर्वदत्ते ! बताओ, बताओ। वह स्वजनों से कहती है कि काम के अवतार, संसार में श्रेष्ठ दोनों कुमार मनोज्ञ देश के हेमामनगर के मनोहर प्रदेश में निवास 5. AP ते तुटुं मि बप्प बिच्छो । 6. AP वत्यहि मुहगंधविराइएहिं। 7. A तावगु वि ता अणु वि। (18) 1. AP सति।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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