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________________ 99.15.2] महाकइपुष्फयंतविस्यउ महापुराणु [365 तुहं महुँ सिरिसेणसमाणु बप्पु __ मा वहहि बप्प सोहग्गदप्यु। तं आयण्णिवि हरिविक्कमेण आगयसमेण पालियकमेण। णिभच्छिवि तणुरुहु सामवण्ण णियपुत्तिहिं सहु संणिहिय कण्ण। वणराएं दिण्णउ दूइयाउ बोल्लति विलासविहूइयाउ । केव वि णउ इच्छइ सा रुयंति अच्छइ पारावयपिउ' सरंति। ता तेत्थु चिलाय विइण्णघाय दमित्ताइव संपत्त राय। संपेसिय सयल सबंधु पक्खु जीवंधरेण संभरिक जक्खु । णिज्जिणिवि भीमसेण सवर तें हित्त कण्ण महस त्ति अवर" पण भीसभिल्लविहंदाणेण . . धरियात वणराज सुदंसणेण। अप्पिउ देखें जीबंघरासु "विण्णाणणायपालियधरासु। तें सो कारागारइ णिहित्तु दप्पंधु णिवंधणु झत्ति पत्तु । धत्ता-अण्णहिं दिणि सरवरि रंजियमहुयरि' पंकवाई जिणि ढोयइ । कंपवियवसुंधरु मत्तउ सिंधुरु जीवंधरु अवलोयइ ॥14|| (15) सरतीरु धरिवि णिव्यूढगव्यु आवासिउ खंधावारु सच्चु । तहिं णिवसंतें णरपुंगमेण 'परियाणियमुणिपरमागमेण । के लिए वह कन्या दे दी गयी। उस कन्या ने उसे उत्तर दिया- हे दुष्ट ! तू मुझे अपना स्थूल मांस क्या दिखाता है ? तू मेरे लिए श्रीषेण के समान मेरा पिता है। हे सुभट ! तू मेरा सौभाग्यदर्प नष्ट मत कर।" यह सुनकर जिसे उपशम भाव प्राप्त है और परम्परा का जो पालक है, ऐसे हरिविक्रम भीलराजा ने श्यामवर्ण अपने पुत्र को डाँटा और कन्या को अपनी पुत्रियों के साथ रख दिया। वनराज ने उसके पास विलासविभूति दूती भेजी। लेकिन वह किसी भी प्रकार नहीं चाहती हुई, रोती हुई अपने पारावतप्रिय (नन्दाद्य) की याद करती हुई स्थित है। उसी समय वहाँ भीलों पर आघात करनेवाले दृढ़मित्र आदि राजा इकट्ठे हुए। भील ने भी अपने बन्धुओं और पक्ष को भेजा। जीवन्धर ने यक्ष को याद किया। उसने भी भीम के वेश में भीलों को जीतकर शीघ्र ही एक और कन्या का अपहरण कर लिया। फिर भीषण भील-संहार के बाद सुदर्शन यक्ष ने वनराज को पकड़ लिया। और उसे विज्ञान तथा न्याय से धरती का पालन करनेवाले कुमार जीवन्धर को सौंप दिया। उसने उसे कारागार में डाल दिया। वह दन्धि शीघ्र ही बन्धन में पड़ गया। __घत्ता-एक दूसरे दिन, मधुकरों से रंजित सरोवर से जिन के लिए जीवन्धर कमल ले जाते हैं, और धरती को कैंपानेवाले एक मतवाले हाथी को देखते हैं। (15) उसे सरोवर के किनारे पकड़कर, गर्व का निर्वाह करनेवाले समस्त सैन्य को ठहरा दिया। वहाँ निवास 5. AP सहुं सुहं णिहिम कपण। 7. A "पिउ | ३. A सुबंधु। ५. AP णवर। 10. AP विण्णायः। 1. AP रुजिय। 12. A जिणदीयई। (15) I. A परियाणिव। 2. AP मुणिचरियागमेण ।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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