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________________ 3661 महाकपुष्फयंतविण्यउ महापुराणु [99.15.3 दिण्णउ भोवणु परमेसरासु रिसिणाहहु विद्धसियसरासु। अच्छेरयाई जायाई पंच को पावइ पुण्णपवंचसंच। तं चोज्जु णिएवि पलंबबाहु वणवइणा पुच्छिउ दिव्यु साहु। जोईसरदाणे अस्थि भोउ सुक्कियफलु भुंजइ सब्बु लोउ। किह दइवें जुजिउ मेच्छकम्मि हउँ किर को होतउ आसि जम्मि । जइ भासइ तुई बालक्कतेउ यणिसुउ होतउ सिसुवण्णतेउ । मुउ तहिं पुणु हुउ मंजारु घोस सद्देण पणासियकीरमोरु। एह वि णिवसुय' होती कवोइ संसारसरणु जाणंति जोइ। पई लुक्की पविरइयावएण' रक्खिय णाहें पारावएण। पुणरवि तुहं जायउ विंझराउ एयहि उप्परि अइबद्धराउ। णेवाविय णेहें णउ मएण भणु को णउ जूरिय "भवकएण। घत्ता-एत्तहि "सपरक्कम पिउ हरिविश्कमु वणयरु दरिसियघायउ। णियसज्जणणिग्गहि सुयबंदिग्गहि आहवि जुन्झुई आयउ ॥15॥ 15 (16) जक्खेण सो वि भडमद्दणासु रणि बंधिवि गंदाणंदणासु। ढोइउ बहुदुग्गइकारणाई णिसणिवि चिरजम्मवियारणाइं। करते हुए, मुनियों के परमागम को जाननेवाले उस नरश्रेष्ठ ने कामदेव को ध्वस्त करनेवाले परमेश्वर मुनीश्वर को आहर-दान दिया। वहाँ पाँच आश्चर्य उत्पन्न हुए। पुण्य-विस्तार की शोभा को कौन पा सकता है ? वह आश्चर्य देखकर, वनराज ने प्रलम्ब बाहुवाले दिव्य महामुनि से पूछा--"मुनीश्वर को दान से ही सुख-भोग की प्राप्ति होती है। सब लोग अपने सुकृत का फल भोगते हैं। मैं किस दैव से म्लेच्छ कर्म से युक्त हुआ, पूर्वजन्म में मैं क्या था ?'' मुनि कहते हैं-"तू सूर्य के समान तेजवाला स्वर्णतेज नाम का वैश्यपुत्र था। वहाँ से मरकर वह एक भीषण विलाव हुआ जो अपने शब्द से कीट और मयूर को नष्ट कर देता था। वह राजकन्या भी कबूतरी हुई। योगी संसार की गति को जानते हैं। आपत्ति की रचना करनेवाले तुमने उसे पकड़ लिया, परन्तु स्वामी कबूतर ने उसे बचा लिया। तुम फिर वनराज हुए और इसीलिए इसके ऊपर तुम्हारा इतना दृढ़ राग है। तुम इसे अहंकार के कारण नहीं, स्नेह के कारण उड़ा ले गये। बताओ, संसार के कर्म से कौन नहीं पीड़ित होता है ? ___घत्ता–यहाँ सबल, आघात करनेवाला पिता हरिविक्रम भील, सज्जनों का निग्रह करनेवाले अपने पुत्र के जेल में होने के कारण युद्ध में लड़ने के लिए आया। (16) योद्धाओं का नाश करनेवाले जीवन्धर कुमार का यक्ष उसे भी युद्ध में बन्दी बनाकर ले आया। अनेक दुःखों के कारण अपने पूर्वजन्मों का कथन सुनकर सब शान्त और निःशल्य हो गये। दूर भवों का संचित 3. A घणवणा। 4. AP हठ किं कहिं होता । 5. AP हुआ पुण। 6. AP मज्जारु। 7. Pomits धोक। 8. B नृवसुय। 9.A पविरुइ। 10. AP व्यक्यि पई हें मएण। 11. AP प्रवकमेण। 12.A सपरिक्कम। 13. A वणियरू।
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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