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________________ 364 1 महाकपुष्पवंतविरय महापुराणु गणमा सुवरिङकविट्टवणंतरालि' । दिसिगिरि पुरि हरिबिक्कमु चिलाउ वणगिरि सुंदरि सवरीसहाउ | तहिं संभूयउ वणराउ पुत्तु सहयरकिंकर भडबलणिउत्तु । अवरु वि तहु सहयरु लोहजंघु सिरिसेहु पुरि हिंडइ दुधु । ता दिट्ठ कण्ण तें उववर्णति सिरिचंद मंदमायंदवति । अवरु वि तुरंगु णइ गच्छमाणु किंकरणरेहिं रक्खिज्जमाणु । हित्तउ चोरेहिं पुलिंदए हिं भडलोहजधपमुहेहिं तेहिं । धत्ता-सु तुरंगु मणोहरु कलहिलिहिलिसरु आणिवि दिष्णु णिरिक्खिउ । वणलच्छिसहायहु हु वणरायहु कण्णारयणु वि अक्खितं ॥13॥ ( 14 ) ता तेण तेत्थु णिरु बद्धगाहु कुंयरीमंदिर पाडिउ' सुरंगु गीसारिय सुय तहिं चित्तु पत्तु जिह पिय गमेसरि वणयरेहिं ढोइय हरिविक्कमणंदणासु उत्तरु दिण्णउं कण्णाइ तासु पेसिय किंकर थिरथोरबाहु । चउहत्थरुंद चउहत्यतुंगु । आलिहियजं विविक्खरविचित्तु । 'कोबंडकंडमंडियकरेहिं । करकमलंगुलिलालियथणासु । किं दावहिं दुज्जण थोरु मासु । [ 99.13.8 10 5. AP वर GA सुंदर सबरी । ( 14 ) 1. AP कुमरी । 2. P पाडिय सुरंग । 3. A इत्यतुंगु । 4. A "हत्यसंदु। 5. AP कोयंड" । 15 5 किया जाता है। जब यहाँ हर्षपुलक हो रहा था, तभी एक दूसरा प्रपंच हुआ। जिसमें तमाल और ताल के वृक्ष आकाश को छू रहे हैं, जो अच्छे कैंथ के वनों से आच्छन्न है, ऐसे दिशागिरि पर्वत के वनगिरि नगर में सुन्दरी शबरी के साथ हरिविक्रम नाम का भील रहता था । उसका सहचर किंकर और भटबल से परिपूर्ण वनराज नाम का पुत्र हुआ। और भी उसके लोहजंध तथा श्रीषेण मित्र थे । दुर्लब वह नगर में घूमता रहा । उसने उपवन में मन्दमन्द गजगतिवाली श्रीचन्द्रा की कन्या देखी । और भी अनुचरों से रक्षित, नदी की ओर जाता हुआ घोड़ा देखा। उन चोर, भीलों ने उसका (घोड़े का ) हरण कर लिया । भट लोहजंघप्रमुख ने पत्ता - हिनहिनाते हुए स्वरवाला वह सुन्दर घोड़ा लाकर उसे (हरिविक्रम को) दिया। उसने उसका निरीक्षण किया । वनलक्ष्मी से युक्त उस बनराज से उन्होंने कन्यारत्न के विषय में भी कहा। ( 14 ) तब उसने वहाँ अत्यन्त मजबूत पकड़वाले और स्थिरस्थूल बाहुवाले अनुचर भेजे। उन्होंने कुमारी चन्द्रा के कमरे में सुरंग लगायी, चार हाथ की चौड़ी और चार हाथ की ऊँची । सुन्दरी को उन्होंने निकाल लिया, और अनेक अक्षरों से विचित्र एक पत्र लिखकर रख दिया कि किस प्रकार धनुषतीरों से मण्डित हाथवाले भीलों के द्वारा गर्वेश्वरी ले जांयी गयी है। कररूपी कमलों की अंगुलियों से स्तनों को सहलानेवाले हरिविक्रमपुत्र
SR No.090277
Book TitleMahapurana Part 5
Original Sutra AuthorPushpadant
AuthorP L Vaidya
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages433
LanguageHindi, Apbhramsa
ClassificationBook_Devnagari & Mythology
File Size10 MB
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